बनने दो उसे पिंकी -पिकी
दोनों वो और उसका husband अच्छे खासे SUCCESSFUL है | अच्छा पैसा कमाते है | सुख सुविधा की हर चीज है घर में | एक बेटा है करन , छह-सात साल का | अंग्रेजी के बेहतरीन स्कूल में पढ़ता है | दिखने में परिवार काफी प्रोग्रेसिव है | सुमी के साथ दिन भर शॉपिंग के लिए जाना हुआ | घर के साथ क़रन के लिये भी काफी कुछ खरीदना था |'आई मुझे ये ही swimming goggle चाहिये| I want this. I liked it so much "' pink ??? तू boy है बेटा | गर्ल नहीं है| पिंकी पिंकी बनेगा तू ? you are strong baccha | करन पूरे रास्ते रोता रहा , फिर दूसरी जिद |' मुझे वो डॉल चाहिये , बार्बी | करन this is something tooo much| बोला न तू boy है | सुमी का गुस्सा सातवे असमान पर था | पूरे समय उनका communication जज्ब करती रही | करन न कभी कभी अजीब behave करता है , सुमी बोलते जा रही थी | वैसे तो इतनी दादागिरी करता है | कल स्कूल में एक बच्चे को मारा | इतनी मस्ती करता है पर कभी अजीब हो जाता है कैसे समझाऊ इसे ?"क्या हो गया है हमें ? सब कुछ बदल रहा है लेकिन ये जेंडर gap क्यों रिजिड होता जा रहा है ? एक तरफ हम प्रोग्रेसिव और दूसरे तरफ हम इतने रिजिड ? सुमी को इतना अपमान ? लडकियों जैसा सोचे पर अपमानित ? सोचो तो कितना तुछा , कितना नीच समझा जाता होगा बेटी को कि बेटा अगर बेटी जैसा सोचता है तो अपमान ? बेटी बेटे जैसा सोचती है तो गर्व ?बाहर मार पीट को , दादा गिरी को, रोब- दाब को अच्छा कहने से हमारा बेटा अच्छा नहीं बनेगा | अच्छा बेटा बनाने के लिए उसे सॉफ्ट रहना भी सिखाना होगा | strongness बाहरी नहीं होती , इंटरनल ही होती है | अपनो को समझने में , hand होल्डिंग में जो strongness लगतीं है , वो दूसरो को धक्का देने में नहीं |लडकिया यदि डॉल्स से खेलकर अच्छी होममेकर बनती है तो लड़को को भी डॉल से खेलने दो | उसे सुलाने दो | लोरी गाने दो | उसके लिए झूठा ही सही खाना पकाने दो | क्या हम नहीं चाहते हमारे बेटे अच्छे होममेकर बने , क्या हम नहीं चाहते उनके परिवार में रिश्तो की बुनियाद बराबरी पर हो |यदि हा तो खेलने दो उन्हें गुडियों से , पहनने दो उन्हें पिंक और बनने दो उन्हें पिंकी -पिंकी एंड सॉफ्ट | अब यदि घरो को बचा सकती है , रिश्तो को बचा सकती है तो वो है SOFTNESS . BEING STRONG नहीं | कभी नहीं |
श$$$$$$$$$$ हम संस्कारी सेक्स पर बात नहीं करते |
मेरी तो मान्यता ही है की सेक्स की बात घरो में बहुत आराम से होनी चाहिए | अभिभावकों ने बड़ी ही सरलता के साथ बच्चो से सेक्स के बारे में बात करना सीख लेनी चाहिये|
बच्चे जिज्ञासा के लिये porn देखे इससे बेहतर है की वे हमसे सेक्स पर बात करे | पति पत्नी सिर्फ बच्चे पैदा करने के बजाय सेक्स पर बात करे , एक दूसरे को महसूस करे | रिश्ते सघन करे | इस देश को अब ज्यादा बच्चे पैदा करने की जरूरत नहीं है बल्कि जरूरत है तो घने रिश्तो की |
बच्चे इतनी आराम से घर में सेक्स पर बात कर सके जीतनी आराम से वो आलू -प्याज़ खरीदने की | ये मेरा विश्वास है की जब ऐसा होगा तब औरतो पर शारीरिक अत्याचार की घटनाए नहीं के बराबर हो जाएँगी |
जाहिर है अब ये मेरा विश्वास है तो मै खुद भी सेक्स के बारे में उतने ही आराम से बात करती हू जितने आराम से घर में सब्जी क्या बनानी है ये करती हू | मेरे लिए penis , vagina और intercourse जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना बहुत आम और आसान है |इसलिए एक नहीं सारे के सारे भारतीय मर्द मुझे बेकार औरत समझते है | एसी औरत जिसे अपने बेटे बेटियों से दूर रखना चाहिए क्यों की मै कुछ ज्यादा ही 'खुली -खुली' हू | ' मै ओवर हू ' | मै विदेशो की बिगड़ी औरतो की नक़ल कर रही हू मै | और सबसे भयानक काम जो मै कर रही हू जिसके लिए मुझे देश निकाला देना चाहिये . मुझे मार डालना चाहिये , मुझे सूली पर चढ़ा देना चाहिये . मुझे रंडी घोषित कर देना चाहिये वो है की मै अपनी महान , सुन्दर भारतीय संकृति को बिगाड़ रख रही हू| मुझे सब मर्दों ने चिल्ला चिल्ला कर बताया है की हम सभ्य लोग है हमारे घरो में ये बेशर्मी नहीं चलेगी | |
हम शर्मसार और सभ्य लोग है , हम औरतो की इज्ज़त करते है , बड़े बुजुर्गो की इज्ज़त करते है , बेटियों की इज्ज़त करते है उनके सामने सेक्स की बात , तौबा तौबा |
सच कहते है ये , ये सेक्स की बात नहीं करते , नहीं बिलकुल नहीं करते | जरा भी नहीं | ये सिर्फ चोबीसो घंटे सेक्स के बारे में सोचते है और ये सेक्स करते है पर सेक्स पर बात नहीं करते | तौबा -तौबा |
- इंनके घर में सेक्स पर लिखी किताबे नहीं मिलेंगी ,पर दिमाग में सेक्स मिलेगा | -ये अपनी बीवी से सेक्स के बारे में बात नहीं करते , उसके साथ सेक्स करते है और ढेरो बच्चे पैदा करते है | -ये सेक्स पर बात नहीं करते पर सेक्स करते है क्यों की सड़क पर आने जाने वाली हर औरत का ऊपर से निचे तक x-रे करते है | - सच है ये सेक्स पर बात नहीं करते सेक्स करते है क्यों की बात करते समय औरत की आखो में न देख कर उसकी छाती की तरफ देख कर बात करते है | ये सेक्स पर बात नहीं करते सेक्स करते है क्यों की बसों में , ट्रेन में , धक्के के आम पर बार औरतो के शरीर पर गिर गिर पड़ते है | -ये सेक्स पर बात नहीं करते ये सेक्स करते है क्यों की लड़की के कपडे इन्हें invite करते है क्यों की उन्हें लडकियों की टांगो और सुडौल बांहों के अलावा कुछ दिखायी नहीं देता | - ये सेक्स पर बात करते नहीं सेक्स करते है क्यों की टेबल पर काम कर रही लड़की की चतुराई उन्हें दिखायी नहीं देती उन्हें उसके clivage दिखायी देता है | ये सेक्स पर बात नहीं करते पर धर्मो और समाज और संस्कारो के नाम पर लड़की को सिर्फ सेक्सी होना सिखाते है | - ये सेक्स पर बात नहीं करते सिर्फ सेक्स करते है क्यों की सेक्स पर बात करने वाली ' वाटर ' और 'परमा ' जैसी फिल्मो के पोस्टर फाड़ प्रदर्शन करते है लेकिन you-tube की एक भी porn film देखने से नहीं चूकते इनकी सारी सारी गालीया औरतो के शरीर के इर्द-गिर्द होती है पर ये सेक्स पर बात नहीं करते है इनके सारे सड़े गले , गंदे jokes सेक्स के इर्द गिर्द होते है पर ये संस्कारी है सेक्स पर बात नहीं करते |

श$$$$$$$$ | हम भारतीय मर्द है हम संस्कारी है | हम सेक्स पर बात नहीं करते \
# SEX .# gender # equality # sex education # double standard #patriarchy
women -lets unite
स्त्री स्वत्रंत्रता की बाते करने का हक़ उस औरत को नहीं है जो दूसरी एसी स्त्री को अपने से तुच्छ समझती है जो उससे कम पैसे वाली है , या उससे छोटे शहर की है , या कम पढ़ी लिखी है |
वो सब औरते जो खुद को feminist तो कहती है पर हर बात पर उनके मुह से एक वाक्य जरूर निकलता है -
' I am not like other women "
' I am not आंटी-type "
' I cant just sit at home like other women "
जो कोई औरत ऐसे वाक्य दोहराती है वो feminist हो ही नहीं सकती | feminist औरते एक ही प्रकार के औरतो से खुद को भिन्न महसूस करती है
,
सिर्फ उन औरतो से जो दूसरी औरतो का शोषण करती है |
--- TISS ( Tata Institute of social science ) की मालिनी ने जो जेंडर पर काम करती है मुझसे कहा
' क्या है न मधु , मै पूरी जिंदगी इतनी एक्टिव रही हू की घर में खाली नहीं बैठ सकती | जो सोशल वर्कर घर में रहने को खाली रहना मानती है , वो क्या कभी औरतो का नेटवर्किंग कर पायेगी ?
---
एक और TISS की अनीता कहती है _
' she is from a small town ,she wont understand our value system| जो सोशल वर्कर बड़े शहर की महिलाओ को सुपीरियर और छोटे शहर की
महिलाओ को इन्फीरियर मानती है उसके जेंडर के काम को क्या कहे ? काम या महज एक नौकरी ?
----
एक और TISS की अश्विनी कहती है
" मधु तुम घर पर ही रहती हो आजकल ? वक्त ही वक्त है
तुम्हारे पास \ I am so busy \
अश्विनी नहीं जानती एक्चुअली वक्त की कमी घर में रहने वाले
महिलाओ के पास होती है |
-----कॉलेज ऑफ़ सोशल वर्क का नितिन कहता है हमारी अनीता तो kitchen में नहीं जाती | तुम जाती हो ? आंटी टाइप्स . वो नहीं जनता की kitchen में न जाने का निर्णय सिर्फ privileged महिलाये ही ले सकती है | औरतो के पास choice नहीं है | और जिनके पास choice नहीं है वो aunty-type नहीं है
------ कॉलेज ऑफ़ सोशल वर्क का अरविन्द कहता है . " तुम तसलीमा नसरीन मत पढ़ा करो madhu वो वो औरतो को भड़काती है . औरते sacrifice करे ये ही ठीक है |
इनमे से कोई भी feminist है ? क्या ये सचमुच महिलाओ के काम को समझते है ? या ये औरतो के लिए किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है | हर एक वाक्य जो एक औरत को दूसरे से इन्फीरियर बताता है , भयानक है | उगलती हू घृणा भर भर के उन सभी वाक्यों के लिये|
सच तो यह है हर औरत चाहे वो किसी भी राज्य से हो . किसी भी कम्युनिटी से हो . किसी भी economic background से हो अलग अलग तरह से Patriarchy का शिकार है |
कोई भी औरत कमज़ोर नहीं है ,अपने तरीके से हर औरत लड़ रही है .
हम सबकी एक दूसरे के प्रति empathy ही हमें इस लडाई को मजबूत बना सकती है |
हमारी सबसे बड़ी problem यही है की हम united नहीं है . |
एक हो जाये तो patriarchy ख़ाक कुछ बिगाड़ पायेगी हमारा |
# gender # sensitiity for work # social work # unity for women #
वो सब औरते जो खुद को feminist तो कहती है पर हर बात पर उनके मुह से एक वाक्य जरूर निकलता है -
' I am not like other women "
' I am not आंटी-type "
' I cant just sit at home like other women "
जो कोई औरत ऐसे वाक्य दोहराती है वो feminist हो ही नहीं सकती | feminist औरते एक ही प्रकार के औरतो से खुद को भिन्न महसूस करती है
,
सिर्फ उन औरतो से जो दूसरी औरतो का शोषण करती है |
--- TISS ( Tata Institute of social science ) की मालिनी ने जो जेंडर पर काम करती है मुझसे कहा
' क्या है न मधु , मै पूरी जिंदगी इतनी एक्टिव रही हू की घर में खाली नहीं बैठ सकती | जो सोशल वर्कर घर में रहने को खाली रहना मानती है , वो क्या कभी औरतो का नेटवर्किंग कर पायेगी ?
---
एक और TISS की अनीता कहती है _
' she is from a small town ,she wont understand our value system| जो सोशल वर्कर बड़े शहर की महिलाओ को सुपीरियर और छोटे शहर की
महिलाओ को इन्फीरियर मानती है उसके जेंडर के काम को क्या कहे ? काम या महज एक नौकरी ?
----
एक और TISS की अश्विनी कहती है
" मधु तुम घर पर ही रहती हो आजकल ? वक्त ही वक्त है
तुम्हारे पास \ I am so busy \
अश्विनी नहीं जानती एक्चुअली वक्त की कमी घर में रहने वाले
महिलाओ के पास होती है |
-----कॉलेज ऑफ़ सोशल वर्क का नितिन कहता है हमारी अनीता तो kitchen में नहीं जाती | तुम जाती हो ? आंटी टाइप्स . वो नहीं जनता की kitchen में न जाने का निर्णय सिर्फ privileged महिलाये ही ले सकती है | औरतो के पास choice नहीं है | और जिनके पास choice नहीं है वो aunty-type नहीं है
------ कॉलेज ऑफ़ सोशल वर्क का अरविन्द कहता है . " तुम तसलीमा नसरीन मत पढ़ा करो madhu वो वो औरतो को भड़काती है . औरते sacrifice करे ये ही ठीक है |
इनमे से कोई भी feminist है ? क्या ये सचमुच महिलाओ के काम को समझते है ? या ये औरतो के लिए किसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे है | हर एक वाक्य जो एक औरत को दूसरे से इन्फीरियर बताता है , भयानक है | उगलती हू घृणा भर भर के उन सभी वाक्यों के लिये|
सच तो यह है हर औरत चाहे वो किसी भी राज्य से हो . किसी भी कम्युनिटी से हो . किसी भी economic background से हो अलग अलग तरह से Patriarchy का शिकार है |
कोई भी औरत कमज़ोर नहीं है ,अपने तरीके से हर औरत लड़ रही है .
हम सबकी एक दूसरे के प्रति empathy ही हमें इस लडाई को मजबूत बना सकती है |
हमारी सबसे बड़ी problem यही है की हम united नहीं है . |
एक हो जाये तो patriarchy ख़ाक कुछ बिगाड़ पायेगी हमारा |
# gender # sensitiity for work # social work # unity for women #
फटती है तेरे नाम से |
१)----मेरे मायके और ससुराल में एक बात कॉमन थी अरविन्द को 'बेचारा ' कहने की | और मुझे 'ओवर' कहने की | 'बेचारा ' अकेला है घर में वाइफ गयी काम के बहाने | अरविन्द की भाभी ने तो उसका नाम 'बेचारा ' ही रख दिया था \ जाने क्यों दिया उसे आज ? तुम्हारे दोस्त आ रहे है न ? मेरे पति को तो ये भी पता नहीं होता की पिने का पानी कंहा रखा है ? तू कैसा बिचारा है रे , दो चार लप्पड़ क्यों नहीं रसीद देता उसे |
मै जब अकेली होती थी घर में तो दस पांच रिश्तेदार और आ टपकते थे | अपने अलावा उन्हें झेलना पड़ता था |पर अरविन्द जब अकेला रहता तो आसपास के पडोसी एसे देखते थे " बिचारा " जैसे कोई लास्ट स्टेज कैंसर का मरीज हो | कोई उसे घर खाने का न्योता देता , कोई दाल चावल पकड़ा जाता | बेचारा भूख से न मर जाये |
2) ----हमारी एक परिचित है वो जब भी घर आती है अपना तकिया कलाम इस्तेमाल करती है ' अरविन्द को साष्टांग प्रणाम करना चाहिए क्यों की वो iइस ' भूत' के साथ रहता है |
3))----अरविन्द का एक और दोस्त है श्रीमाली , उदयपुर का बड़ा townplanner है |अपने वाइफ के बारे में ,'just house वाइफ " कह कर परिचय करता है | उदयपुर की असली मालकिन तो मेरी बीवी है , आर्डर तो वही से आते है ' कह कर हंस पड़ता है | एक भरी सभा में उसने एलन कर दिया " अरविन्द तुमसे बहुत डरता है | बेचारा सीधा साधा जो है "| और अपने पीले दांत दिखाते खी -खी कर हंस दिया |
जैसे उसने भरी सभा में मुझे उघाड़ दिया हो और मेरी औकात दिखा कर एक जंग जीत ली हो |
4)----- मेरे सामने एक परिचित है | वो आये दिन एक ही बात कहता है , " . अरविन्द चल यार थोडा सा घूम आते है , तू बिचारा हमेशा danger-zone में रहता है , यह कर मुझ पर आने वाला गुस्सा निकाल देता है |उसकी पत्नी ने भी हमेशा बड़े जोर जोर से स्वीकार की
'sumant बहुत डरता है तुझसे | फटती है उसकी तेरे नाम से | कारण जानने पर पता चला की मै रात को अकेली फार्म पर बीना दरवाजे के घर में रहती हू
कार चला कर रात को अकेली ६०० कम दुसरे राज्य में चली जाती हू| दोस्तों के साथ रात को करती हू|
इसलिए वो डरता है |
5) ---- मेरे देवर को मै बहुत provoke करती थी . चुप बैठीरहू तो भी ,| पता नहीं क्यों ऐसा लगता है की इसको ठीक कर दो'- ये खुद मेरे पढ़े लिखे देवर ने मुझसे कहा है |
अरविन्द की दलील थी ,u r nice to everyone लेकिन तेरी आँखों से समझ आता है ' u cant be tammed'|
हकीकत ये नहीं है की मै danger हू , हकीकत ये नहीं है की मै तुम्हे परेशान करती हू| हकीकत ये है की मुझे अपने काम करने के लिए किसी पुरुष की जरूरत नहीं होती | हकीकत ये है की अपनी सेफ्टी के लिए , रोजी -रोटी के लिए , आइडेंटिटी के लिए मेरी अपनी जिंदगी के सपने पूरे करने के लिए मुझे किसी पुरुष की जरूरत नहीं | मै अपने हिस्से की लड़ाइया खुद लड़ सकती हू| मेरे चारो तरफ जो भी पुरुष है वो मेरे दोस्त है . खुशिया और गम बाटने और सुनाने के लिए / मेरा और उनका सब कुछ बराबर है , जिम्मेदारिया सहने के लिए मेरे और उनके कंधो की ताकत भी बराबर है |
असलियत तो ये है . दोस्तों की ' ये सब डरे हुए है '. मेरे पडोसी . मेरे रिश्तेदार .श्रीमाली the town planner., और मेरा पति भी जो उसे ' बेचारा" कहने पर बड़ा खुश होता है की तीर सारे मधु के सीने पर जा रहे है | तुम सब डर नहीं रहे हो . insecure हो रहे हो अपनी सत्ता से , अपने सिंहासन के उतर जाने से | किसी औरत ने इतराकर नहीं कहा " Plz छोड़ दो न मुझे वंहा तक तो तुम्हारी इज्ज़त क्या रह जाएगी ? और किसी ने पलट कर कह दिया . 'dont worry i can drive on highway in the night/ चली जाउंगी | तुम कहो तो तुम्हे ड्राप कर दू ?"
क्या रह जायेगा उनकी जिंदगी में कण्ट्रोल करने ,को सुपेरिओरिटी दिखाने को , ताकत दिखाने को , प्यार दिखाने को , अब भला हम अकेले चले जाये तो प्यार दिखाने के लिए वो घर जाकर खाना तो नहीं पकाएंगे न ? कपडे तो नहीं धोयेंगे न ? बच्चो की टट्टी तो साफ़ नहीं करेंगे न? उनके प्यार दिखाने के , ताकत दिखाने के रास्ते तुम बंद कर दो तो वो डरेंगे नहीं ? "
अरे सुन लो . तुम डरते हो इसलिए नहीं की तुम स्ट्रोंग हो . तुम डरते हो क्यों की तुम weak हो .
'WEAK MEN ARE ALWAYS AFRAID OF STRONG WOMEN "
# gender# inequakity#men-women relationship .# My life my story
नींद भी चली गयी है -माँ के साथ on mothers day
नींद नहीं आ रही और याद आ रही है माँ
माँ जिसे नहीं देखा कभीहंसते हुए खुलकर ,
नहीं देखा कभी गाते हुए ‘नहीं देखा कभी नाचते हुए
खिलखिलाती तो कैसी दिखाती माँ ?
इत्र से भीगी कैसी दिखती माँ ?
अखबार पढ़ती कैसी दिखती माँ ?
पापा के हाथ का गर्म खाना खाती कैसी दिखती माँ
जाने कितने रहस्य का पुलिंदा थी माँ |
माँ की उपवास की ऊष्मा बैचेनी से लथपथ ,
बरतनों के ढेर के बिच उसकी ख़ामोशी के बीच
सबकी जिम्मेदारियों को ओढ़कर छुपे कंधो के बीच
मै
कभी सो नहीं पायी|
मेरी नींद भी चली गयी है माँ के आसपास
कभी न आने के लिये
पर सुनो माँ , मै तुम्हे कम ही याद करती हू,
जी लेती हू दिल खोल तुम्हारी याद में
|
# Mothers day . # Mother # Gender # Mothers life
sexist jokes - ? please spare me |
1)Teacher .' How many mangoes are equal to one dozen ?
Papu --- six girls
2) Virat Kohali proved that our men dont play too well with balls
3) New Amul Ad
4) फेब इंडिया के कर्मचारियों का कहना है की
स्मृति ईरानी के बड़े बड़े देख कर कैमरा खुद ही घूम गया अब हम क्या करे ?
५)बारिश के कारण गिरी हुई फसलो को देखने के लिए सनी लिओन आ रही है ताकि वो फिर से खडी हो सके |
and on and on and on
Whats this ? Just a bit of edgy humors thats all .After all women need to lighten up and learn to take jokes ,isnt it ? 'Oh ! stop it Madhu " dont be so over sensitive , Its only funny .No real harm meant by it
THE ONLY PROBLEM is harm is meant by it , because They are not funny , they are hostile
Jokes on womens intellect , womens understanding , womens capability , Jokes on women driver , Jokes on suny leone , Jokes on Anushka sharma are not just jokes ,They are not just harmless and funny ,They normalize sexism and hostile behavior towards women . Most people even do not realize that these types of sexist jokes are omnipresent in our country , actually it is epidemic Today when in so called intellectual society Racist and Homophobic jokes are no longer tolerated the way they once were and people have become sensitize to the discrimination but their demeaning jokes involving women continue to get free pass Women being treated as nothing more than sexual objects ,After all if you cant laugh at these jokes , what can you laugh at ?
Papu --- six girls
2) Virat Kohali proved that our men dont play too well with balls
3) New Amul Ad
4) फेब इंडिया के कर्मचारियों का कहना है की
स्मृति ईरानी के बड़े बड़े देख कर कैमरा खुद ही घूम गया अब हम क्या करे ?
५)बारिश के कारण गिरी हुई फसलो को देखने के लिए सनी लिओन आ रही है ताकि वो फिर से खडी हो सके |
and on and on and on
Whats this ? Just a bit of edgy humors thats all .After all women need to lighten up and learn to take jokes ,isnt it ? 'Oh ! stop it Madhu " dont be so over sensitive , Its only funny .No real harm meant by it
THE ONLY PROBLEM is harm is meant by it , because They are not funny , they are hostile
Jokes on womens intellect , womens understanding , womens capability , Jokes on women driver , Jokes on suny leone , Jokes on Anushka sharma are not just jokes ,They are not just harmless and funny ,They normalize sexism and hostile behavior towards women . Most people even do not realize that these types of sexist jokes are omnipresent in our country , actually it is epidemic Today when in so called intellectual society Racist and Homophobic jokes are no longer tolerated the way they once were and people have become sensitize to the discrimination but their demeaning jokes involving women continue to get free pass Women being treated as nothing more than sexual objects ,After all if you cant laugh at these jokes , what can you laugh at ?
-Studies show that exposure to sexist humour can lead to tolerance of hostile feelings and discrimination against women.What this shows is that humorous disparagement creates the perception of a shared standard of tolerance of discrimination that may guide behaviour when people believe others feel the same way.
-"Sexist humor is not simply benign amusement. It can affect men's perceptions of their immediate social surroundings and allow them to feel comfortable with behavioral expressions of sexism without the fear of disapproval of their peers,"-Sexist jokes not only allow men (and sadly, women) to believe that sexist behaviour falls within the bounds of social acceptability, it also reveals people's deep-rooted -- and often undetected -- prejudices about a woman's place in our world.-
There is this deliberate blindness, this unwillingness to see, this desire to "mansplain" it away that simply amazes me, when it comes to admitting that sexist attitudes are doing real harm to women and the self-image of girls.Women are. And sexist jokes like these perpetuate the stereotypes that continue to do us major harm
.Friends ,If you are dismissing my valid concern and defending by saying it is just a joke ,Please do not communicate to me . I am not interested , I will take it offensive and silly
# Sexist jokes .#jokes on women #dirty jokes #hostile sexism #gender
तुम्हे देखकर गुंडों की सीटिया नहीं तो क्या मंदिर की घंटिया बजेंगी ?
निर्भया की documentary देखने के बाद दो दिन सो नहीं पायी | दिल दहला देने वाली इस घटना ने हर संवेदनशील इन्सान को उस दिन रुला दिया , जिस दिन ये घटना घटी |
पर आज मेरी बैचैनी का कारण था रेपिस्ट का इंटरव्यू |
lawyer का interview |
जब से ये documentary हमारे घरो में पहुची है , तब से अनेको के मुह से सुन चुकी हू | हर पुरुष एसा नहीं होता | एक रेपिस्ट Indian male represent नही कर सकता |
क्या हम सच कह रहे है ?
इतनी नाखुशी दिखाने वाले पुरुष अपने सर पर हाथ रख कर कहे क्या उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी एसा सोचा नहीं ? क्या उन्होंने कभी अपनी बहन, बेटी और बीवी से कहा नहीं .
" तू वंहा क्या कर रही थी?' ' इतनी रात को तू उसके साथ क्या कर रही थी ?
मुझे तो रेपिस्ट मुकेश और अपने भाई में शतप्रतिशत समानता नज़र आती है "
' मेरे भाई ने भी मुझसे कई बार कहा है " भली लडकिया शाम के बाद घर से नहीं निकलती "
मेरे भाई ने भी मुझसे कई बार कहा है . " तू उस लडके के साथ रत १० बजे वंहा क्या कर रही थी " ( यही बात rapists ने निर्भया से बस में पूछी
" तुम दोनों इतनी रात को वंहा क्या कर रही थी ?
''तुमने जीन्स क्यों पहनी थी ?
' एसा तुम्हारे साथ ही क्यों हुआ ?
प्रॉब्लम लडकियों में ही है " जैसी मेरे चारो तरफ विद्यमान पोटेंशियल रेपिस्ट से मैंने भी एसा ही सुना था |
" ताली दोनों हाथ से नहीं बजती . "कहने वाला बास्टर्ड मुकेश क्या मेरे भाई जैसा नहीं है . जो मुझसे हमेशा कहा करता था , भली लडकियों के rape नहीं होते |
अपने college days में मैंने जनसत्ता में एक लिखा था . अमिताभ बच्चन के सेक्सिस्ट dialogue पर , अब मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन दोस्ताना फिल्म में अमिताभ पुलिस इंस्पेक्टर होता है , जीनत अमान सेक्सुअल harassment की कंप्लेंट लेकर थाने जाती है
अमिताभ पूरी x-ray निकालते हुए जीनत को देखता है , वो देखना कंही भी किसी potential rapist से कम नहीं था " कहता है
" तुम्हे इस रूप में देखकर गुंडों की सीटिया नहीं
तो क्या मंदीर की घंटिया बजेंगी ? "
और हॉल में तालियों की गडगडाहट |
अमिताभ भी कह देता है तुम्हारे कपडे invite कर रहे थे | गुंडे गलत नहीं है |
"woo लड़की ही ऐसी थी " कहने वाला मेरा देवर भी बिलकुल मुकेश जैसा है जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है 'ताली एक हाथ से नहीं बजती "
'molestation के बाद " तुम्हे ग्वालियर में जीन्स पहनने की क्या जरूरत थी कहने वाले मेरे पार्टनर में भी मुझे वही अमिताभ बच्चन दिखाई देता है जो कह रहा है 'तुम्हे देख कर क्या मंदिर की घंटिया बजेंगी : ?
सच कहू तो , मेरे घर में , तुम्हारे घर में जहा कही sexist . behaviors है वंहा सब जगह sexual abuse है |
पर आज मेरी बैचैनी का कारण था रेपिस्ट का इंटरव्यू |
lawyer का interview |
जब से ये documentary हमारे घरो में पहुची है , तब से अनेको के मुह से सुन चुकी हू | हर पुरुष एसा नहीं होता | एक रेपिस्ट Indian male represent नही कर सकता |
क्या हम सच कह रहे है ?
इतनी नाखुशी दिखाने वाले पुरुष अपने सर पर हाथ रख कर कहे क्या उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी एसा सोचा नहीं ? क्या उन्होंने कभी अपनी बहन, बेटी और बीवी से कहा नहीं .
" तू वंहा क्या कर रही थी?' ' इतनी रात को तू उसके साथ क्या कर रही थी ?
मुझे तो रेपिस्ट मुकेश और अपने भाई में शतप्रतिशत समानता नज़र आती है "
' मेरे भाई ने भी मुझसे कई बार कहा है " भली लडकिया शाम के बाद घर से नहीं निकलती "
मेरे भाई ने भी मुझसे कई बार कहा है . " तू उस लडके के साथ रत १० बजे वंहा क्या कर रही थी " ( यही बात rapists ने निर्भया से बस में पूछी
" तुम दोनों इतनी रात को वंहा क्या कर रही थी ?
''तुमने जीन्स क्यों पहनी थी ?
' एसा तुम्हारे साथ ही क्यों हुआ ?
प्रॉब्लम लडकियों में ही है " जैसी मेरे चारो तरफ विद्यमान पोटेंशियल रेपिस्ट से मैंने भी एसा ही सुना था |
" ताली दोनों हाथ से नहीं बजती . "कहने वाला बास्टर्ड मुकेश क्या मेरे भाई जैसा नहीं है . जो मुझसे हमेशा कहा करता था , भली लडकियों के rape नहीं होते |
अपने college days में मैंने जनसत्ता में एक लिखा था . अमिताभ बच्चन के सेक्सिस्ट dialogue पर , अब मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन दोस्ताना फिल्म में अमिताभ पुलिस इंस्पेक्टर होता है , जीनत अमान सेक्सुअल harassment की कंप्लेंट लेकर थाने जाती है
अमिताभ पूरी x-ray निकालते हुए जीनत को देखता है , वो देखना कंही भी किसी potential rapist से कम नहीं था " कहता है
" तुम्हे इस रूप में देखकर गुंडों की सीटिया नहीं
तो क्या मंदीर की घंटिया बजेंगी ? "
और हॉल में तालियों की गडगडाहट |
अमिताभ भी कह देता है तुम्हारे कपडे invite कर रहे थे | गुंडे गलत नहीं है |
आज सोचती उस मुकेश , और उस वकीलों के बारे में जिन पर हम documentary देखने के बाद जूते मार रहे है ,क्या वो सिर्फ एक कदम आगे नहीं है .
सिर्फ एक कदम ,
हमारे अपने घरो के पुरुषो के . मेरे भाई के , जिसने सभ्यता और असभ्यता definition बिलकुल वैसे ही दी जैसे वो वकील दे रहा था |
"woo लड़की ही ऐसी थी " कहने वाला मेरा देवर भी बिलकुल मुकेश जैसा है जो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है 'ताली एक हाथ से नहीं बजती "
'molestation के बाद " तुम्हे ग्वालियर में जीन्स पहनने की क्या जरूरत थी कहने वाले मेरे पार्टनर में भी मुझे वही अमिताभ बच्चन दिखाई देता है जो कह रहा है 'तुम्हे देख कर क्या मंदिर की घंटिया बजेंगी : ?
सच कहू तो , मेरे घर में , तुम्हारे घर में जहा कही sexist . behaviors है वंहा सब जगह sexual abuse है |
और ये सब पोटेंशियल रेपिस्ट है |
पोटेंशियल रेपिस्ट |
#potential rapist#clothes are invitation# sex object#men-women
WOMAN through guest writer Neelima Aphale
This month's guest writer - Neelima Aphale

About - Neelima Aphale is originally Hyderabadi woman - loving , caring charming and beautiful Neelima is professionally trained psychologist and counselor working with many Ngos and independent groups .Neelima feels a Pune based organisation "DIsha counselling centre , did a lot of drastic change in her , but actually its Neelima whose approach towards life as homemaker , as partner , as parent and as individual inspires alot ,
Here is Neelima's original views -
Status of woman in 21st entury India????
India has entered 21st
century with bang. We hear so much about Woman power, equal rights, equal opportunities
in jobs, education. Women today hold challenging
assignments in police, army, fire brigade, air force, pilots.
But when you travel across length of India
and see middle class families which constitute almost 65 % of India’s
population, we find nothing much has changed.
In fact, woman in house is opposed by
another woman in house.
It reminds me of one real life incidence.A girl grown up in typical south Indian, conservative family comes to Mumbai after marriage after spending 22 years in closely knit family protected by parents , where she is not allowed to go out alone in evening, not to board auto rickshaw alone, college is only pastime till marriage is fixed.After marriage, her life in Mumbai was like some unknown planet for her. But she adjusted herself with pace of the city , and soon gained self confidence , started doing smoothly all the daily chores with great confidence.With this new empowerment and new understanding of gender and feminism , she started comparing her previous life, the way people in her mother’s place ,particularly ladies, think and behave.After her father’s death behavior of her aunts, sister-in laws towards her mother changed completely.
How can a women be enemy of another women?
It is disgusting to see ,the widow is
not supposed to do Pooja .One must not
see widow’s face early morning as it is considered to be bad omen. She should
not wear red and green colour sarees , which she has worn all these years ?
Who has formulated all these norms? Why
there are no such norms for Men?
And the mockery is that these norms are
framed and enforced by women only. It is a pity to see the educated, working
women who have learned science in school and Colleges also succumb to such
foolish rituals.
How can we talk about our exploitation as female sex when we ourselves are not united < We talk men treats us secondary but we women do not leave a single opportunity to oppress another vulnerable woman , Before we shout about equality , and fingers others , its our turn first to get united , make a powerful team , make a powerful union , then and only then change is possible .
written by Neelima Aphale
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