प्यार के दोगले मापदंड

मेरे दोस्त अक्सर मुझसे कहते है की तुम्हारे यंहा तो पूरी तरह से gender-equality होगी | तुम 'फेमिनिस्ट' और अब तो तुम्हारी बेटी भी 'स्त्री -पुरुष समानता' की हिमायती  है |   कितना अच्छा लगता होगा  उस घर में जहा 'sexism'  नहीं के बराबर है |  घर नहीं स्वर्ग होगा वो |
और मै कहती हू कितना  कठीन होगे उस घर के रिश्ते जहा एक को तो sexism दिखाई देता हो और दूसरो को नहीं |

तो दोस्तों एसा नहीं है |   मेरे घर में भी असमानता है | क्यों की  असमानता की लेयर्स होती है | उसके भी अपने  स्तर होते है |  अलग अलग घरो में, अलग अलग देशो में ,अलग अलग राज्यों और प्रान्तों में , अलग अलग community में असमानता के स्तर अलग अलग होते है |
और  हा  मेरे घर में भी   sexism  है  |  बिलकुल मौजूद है जी  |   आसानी से दिखाई न देने वाला  | पर है |

आज भी घर की   'कॉल-बेल'  बजती है तो ये मै ही होती हू जो अपने वर्क टेबल से उठकर दरवाजा खोलती हू ||   मै ही हू जिसे याद रहता है माली कब आने वाला है और पानी कब | और ये भी मै ही हू जो  अपने टाइम shedule एडजस्ट कर रही होती हू |  मेरा पति नहीं | बिलकुल भी नहीं |
 |दिशा  आज भी जल्दी में होगी तो अपने कपडे धोने के लिये  मुझे ही  देगी | मुझसे  ही पानी  और चाय दस बार मांगेगी और मैंने मना  करने पर  मुझसे  ही बहस भी करेगी  | दस बार चिल्लाएगी मेरी बैग कहा है ? मेरा काजल कहा है ?  मेरी पर्स कहा है ? मेरी किताब ? और मेरा पेन? मेरी  फाइल ?  मेरी चप्पल ? मेरा पेन ड्राइव  | माँ मेरे कपड़ो पर धब्बे कैसे लग गये ?  माँ कितने दिन हो गये   अपने हाथ से बना  गाज़र हलवा नहीं खिलाया | माँ के सफाई की बराबरी कोई नहीं कर सकता |  दस बार  वो उस   pintrest  के  sexist वाकया को   दोहराएगी  | ' यदि घर में कोई चीज माँ  नहीं  दूंढ  सकी तो कोई नहीं ढूंढ  सकेगा | दिन में दस बार वो कहेगी  तुम इतना organised कैसे हो   दिन में दस बार वो मुझसे   डिमांड करेगी . मै बिजी हू कहने पर झगडा करेगी | पर वो अरविन्द से कभी नहीं कहेगी " बाबा मेरी पर्स कहा  ? मेरे जूते  कहा है  ?   कभी  नहीं कहेगी  multi =tasking क्यों नहीं कर  पाता बाबा तू माँ की तरह ? कभी नहीं कहेगी   बाबा तू इतना unorganised  है  की   माँ पर   काम का   बोझ  बढ़ जाता है
 यदि वो घर के बाहर होगी  और घर आने पर लॉक दिखा तो वो मुझे फोन करेगी , कहा है तू ?   चाबी कहा है ?  वो कभी अरविन्द को फोन कर नहीं पूछेगी चाबी कहा है ? बाहर से फोन कर हमेशा मुझे ही पूछेगी की घर में कुछ लाना है क्या दूध ,दही ? सब्जी ?   यंहा तक तो ठीक है लेकिन भयानक ये है की वो अरविन्द से कुछ भी डिमांड नहीं करेगी \ ये भी नहीं की बाबा उठ और खाना बना , माँ को आज रिपोर्ट पूरी करनी है | अपने घर में अभी भी असमानता है  यह जानने के बावजूद वह अपने बाबा से नहीं कहेगी की असामनता के लिये उठ कर तुझे काम करना होगा बाबा | घर के कामो की जिम्मेदारिया और लेनी होगी |


independent, mature , feminist दिशा   घर के बाहर जो छोटी छोटी गैर बराबरी पर आक्रोश व्यक्त करती है  घर में एक एसी लड़की बन जाती है  जो virtual परिवार में रहती है | जहा कोई टकराहट नहीं  होनी चाहिए | कोई संघर्ष नहीं होना चाहिए | बाहर की ताकतवर फेमिनिस्ट घर में एकदम से कमजोर लड़की बन जाती है ||
'आय एम् क्लोस   टू माय माँ   नॉट  माय बाबा ' एसा वो कहती है  और बतौर हक़ वो मुझे काम बताती है | अरविन्द को वो अपने कपडे धोने के लिये नहीं कह सकती क्यों की वह उसके साथ इतनी नजदीकी महसूस नहीं करती है | ये मानना दिशा का ही नहीं बल्कि उसकी हमउम्र साथियों का भी है |

  हम माँ के नजदीक है इसलिए उस पर गुस्सा होने का हक़ रखते है  | उसकी कही बातो को इग्नोर करने का हक़ रखते है | उसे काम बताने का हक़ रखते है |
क्या ये हमारे दोगले मापदंड नहीं है की हक़ और प्यार के  नाम पर  माँ के पल्ले   बाँध देते है multi-tasking |   हक़ और प्यार के नाम पर रखते है उससे ढेर सारी अपेक्षाए  मसलन उसे  बिना कहे वो समझे की आप की जिंदगी में हो क्या रहा है ? जैसे वो इन्सान नहीं कम्पूटर हो गयी और प्यार के नाम पर आप उसे   कंप्यूटर बनाये रखने की पूरी कोशिश में लगे हुए है |

पहले 'माँ ' को ' माँ ' बनाये रखने की कोशिश होती थी यह कह कर की ये तो उसका ही काम है . उसका ही जिम्मा है | पर अब 'माँ ' को 'माँ' बनाये रखने के लिये महाभयंकर तरीका इजाद कर लिया है हम सबने और वो है 'हक़ या प्यार "

प्यार का , 'क्लोसेनेस' का  'हक़ 'मतलब ये नहीं होता है की अपनी जिम्मेदारिया हम किसी और पर  डाल दे  या  , उनके काम का बोझा बढ़ा दे और पूरा न कर पाने पर  उसे  गिल्टी भी फील करा दे |

प्यार का मतलब होता किसी  जरूरत के समय काम में हाथ बटाना  ,  उसे empathise करना . खुद के लिये समय  निकालने के लिये उसकी मदद करना | उस
के सपने सुनना और उसे पूरा करने में मदद करना |
जब घरो में   माँए  अपने स्वतंत्र सपने देखने लग जाएँगी और उन्हें  तुम्हारे मदद की बदौलत हासिल भी कर लेंगी तब शायद हम सब कह पाएंगे
' तुम अपनी माँ से सचमुच बहुत प्यार करते हो |'
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अच्छी औरत बिलकुल नहीं

नार्थ  में   पली  बढ़ी   हू , इसलिए    नार्थ   से  बेहद लगाव है |

 दिल्ली ,  आगरा , ग्वालियर घूमकर हाल ही लौटी हू |

सरोजिनी मार्किट , पुराणी दिल्ली , ताज महल ,  किला ,  महाराज   बाड़े की भीड़ , कटोरा ताल , पराठे वाली गली के बारे में बता रही  होती  हू   तो एक ही  नज़र , एक ही सवाल घूम फिरकर  आ जाता है

" साथ  में कौन था ?"

मैंने  बताया मै अकेली थी |

"क्याआआ?   अकेल्लीईइ ?  '

यू ही अकेली  कोई लड़की  दूसरे शहर घूमने जा सकती है ?             वो भी  महज घूमने ,                            

बिना किसी काम के ?        बिना  परिवार के |  

यह जानने के बाद की मै अकेली थी किसी को मेरे अनुभव सुनने में कोई जिज्ञासा  नहीं थी      |जो बात उनके दिलो दिमाग में थी वो यही की  " तुम  अकेली थी ?'

थी न  मेरे साथ मेरे बचपन की यादे |
और कोई नहीं ?
कोई मर्द नहीं ?
नहीं
लोग हैरान होकर मुझे देखते रहे |बगैर मर्द के औरत के होना कोई होना होता है भला ?

मान लो मेरा मन कर रहा हो की गोदावरी में एक डूबकी लगा लू ,  सुला   विनियार्ड के डेक पर घंटो   वाइन का लुत्फ़ लू  . बेक वाटर पर दिन भर किताब पढ़ते हुए लेटी रहू  , रात के शो में दंगल देखने चली जाऊ , तो मुझे  क्या करना होगा ?  तो अपने पति से समय की भीख   मांगनी होगी या फिर  किसी और  मर्द का जुगाड़ करना होगा |  क्यों  की बिना मर्द के औरते ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती |  होटल में कमरा बुक करो तो    पूछते    है

'साथ में कौन है ?'      साथ में  मर्द है  तो वे  निश्चिन्त हो जाते है |
अकेली औरत को किराये पर घर नहीं . होटल में कमरा नहीं , |     सब कुछ जैसे   संदिग्द्ध हो जाता है |     कही यह   गलत   औरत  तो  नहीं |

पुरुष ना हो तो परेशानी , पर यदि पति के आलावा कोई और पुरुष हो तो भी परेशानी |   कौन है ये ?    इससे तुम्हारा  क्या नाता ?             यदि साथ में पुरुष नहीं है तो क्यों नहीं है और है तो कौन है ?

और यदि   दोनों  ही नहीं तो   तुम कुछ और् हो

चाहे  जो भी हो पर अच्छी औरत तो बिलकुल नहीं | 

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