बहू ठीक नहीं निकली |

मेरी एक दोस्त ने एक दिन गुस्से में आकर अपने पति के सिर  पर कुकर दे मारा और दरवाजा खोल कर घर के बाहर निकल गयी | रात को अपने एक सहेली के यंहा शरण ली और फिर लेडिज हॉस्टल \
बाद में  दौड़ धूपकर उसने एक नौकरी का बंदोबस्त भी कर लिया |
रिश्तेदारों में चर्चा   लावा की तरह फैलती  गयी  |
'बहू ठीक नहीं निकली | काश उसके चरित्र का पहले ही  अंदाज़ा होता |

हमारे देश में किसी लड़की या औरत के चरित्र का अंदाज़ बहुत ही जल्दी लगा लिया जाता है , सब्जी अच्छी है या बुरी यह परखने में भी कभी कभी समय लगता है लेकिन औरत का चरित्र कैसा है   इसका अंदाज़ा  लोग मिनटों में लगा लेते है |







मै एसी कितनी ही   औरतो को जानती   हू  जो domestic   violence   की विक्टिम   होने   के बाद भी   दो जून खाने के लिये  और साल भर बदन ढंकने के लिये दो कपड़ो की खातीर उस घर की मिटटी से चिपकी रहती है . बच्चो को कीट पतंगो की  तरह  बढ़ने देती है और घर में पड़ी रहती है या  पराश्रयी पेड़ की तरह  पति   रूपी पेड़ को   जकडे रहती है |   और इस व्यवस्था को समाज बेहतर करार देता है और एसी औरत को एक संवेदनशील ,औरत ,जो सब कुछ सह कर भी अपने घर नामक  पिंजरे को बचाये  रखती  है |



मेरी दोस्त की तरह कितनी लडकियों का स्नायु बल इतना मजबूत है  अपने पति के अनादर को सहन करते हुए चिपकने के बजाय, प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने लिए अपना रास्ता तय करना पसंद करे |
मेरी यह दोस्त अपने तथकथित पति के  कार . बेंक बेलेंस और स्टेटस  की छतरी के निचे बैठी नहीं रही , किसी की अनुकम्पा अनुग्रह के लिये हाथ नहीं फैलाया , बल्कि  अपने पावो   तले  जमीन   को  महबूत किया    इसलिए गर्व है मुझे उस  पर |  गर्व है मुझे इसकी बहादुरी पर |













मन   उंडेलता है   भर भर प्यार इस  साहस से सराबोर मेरी दोस्त के लिये |


मदारी रे मदारी |




मेरे  भाई,    पिता  , तमाम  नाते  रिश्तेदार  , कोई   भी    मेरी  बात से  सहमत  नहीं है |     वो  स्त्री  पुरुष  बराबरी में  यकीन   नहीं  करते  |    वे  नहीं  मानते  की  स्त्री  दुय्यम  दर्जे  पर है |        वे  मानते  है  की  स्त्री  और  पुरुष  की कोई  बराबरी    है  ही  नहीं     |     स्त्री   तो    पुरुष  से  कितने  ही  बातो  में  श्रेष्ठ  है  एसा  उनका  मानना  है |         स्त्री  तो   अपने  में  सब कुछ  समाये  हुए  है  |     वह  पुरुष  की  सिर्फ  पत्नी  नहीं   है   वह  स्त्री  के  रूप में  उसकी  माँ  भी  है  , बहन  भी  है  | वह  अपनी  योग्यता  से  सारे    रिश्ते    बखूबी  निबाह  ले  जाती  है  | और  पुरुष  की  जिंदगी  में  घोल  देती  है  मदिरा  |  उड़ेल  देती  है  प्यार  ही  प्यार  |
सच  है  |  कितनी  गहरी  बात  कह  गये न  ये लोग  |   स्त्री  के   इतने   सारे  रूप   |  पुरुष   भी  तो  उसकी  इस  योग्यता   पर  , इस  अदा  पर   फ़िदा  है   |  वह     भी  तो  स्त्री  के  शरीर  में  इतने  सारे   रिश्ते    देखना  चाहता  है  |  उस  पर   मर  मिटता   है   |   अपनी  पत्नी   को    माता  के  रूप  में  , प्रिय  के  रूप  में  , बहन  के  रूप  में  देखने  पर  उसे  बड़ा  सुकून   मिलता है |  एक  अलग   ही  प्रकार  के  आनंद  की  अनुभूति   होती  है   एक  ही  शरीर   में  तीनो  को  पा  लेने  पर  वे  ' पत्नी  '  को  वे  देवी  का  दर्जा  दे देते  है|     वे  तो  धन्य  हो  जाते  है  जब वे  घर  लौटते  है  स्त्री  स्वादिष्ट  खाना  बनाकर  उसका इंतजार    करती   है   , फिर माँ  की  तरह  बैठकर   उसे    स्वयं   खिलाती   है   , परोसती  है  , यकीनना    . उसे जरा  भी  माँ  की  कमी  महसूस   नहीं  होने   देती  |








 और   तो  और   बड़ी  बहन  की  तरह  उसके  कपडे    संवारती   है    | दुरुस्त    करती  है     | उसे  जरा भी , रत्ती  भर  भी  बहन  की  कमी  महसूस  नहीं  होने  देती |








  रात   को  बिस्तर  पर  थकी  हारी  पत्नी नहीं बल्कि  प्रेमिका  बन  अपने  शरीर  को , अपनी  बांहों  को  फैला  देती  है  |  और  पति  को  सुखी  कर  जाती  है  |

















 सही   है    स्त्री  के  इन    विभिन्न    रूप    में    ही    पुरुष  को  मजा   आता  है  |    जिंदगी  में  वो  स्त्री से  नाटक  करवाते  है , अभिनय  करवाते है  और फिर  मजा  लूटते  है |  तालिया  पीटते  है  |  स्त्री  जितने  अलग अलग  रूपों  में  उसकी  जिंदगी  में  आती  है  उतनी  ही  वो  उसे  रसभरी  लगती  है |  स्त्री  जीतनी  अपनी  यह  कला  दिखाएगी  पुरुष  उतना  ही  उसके  तन मन का आनंद लेगा | उसके   कला  में  रस  लेगा  |  आस्वाद  लेगा  |
  बेशर्म  पुरुष   जिस  स्त्री  पर  वो  वायलेंस  करता है , , हिंसा   करता  है  , नोचता  है  , कुचलता है . खनन  करता है , उसे ही  उसने  नाम दे  डाला   ' जननी |'         पृथ्वी  भी  तो  जननी  है |                  स्त्री  की तरह  धारण   करती  है  |        उस  पर कितने  भी  अत्याचार करो  चूर्ण -विचूर्ण  होने से पीछे नहीं हटती |





हर  वो चीज  जो  अत्याचार पर भी टूटती  नहीं  , वार नहीं  करती    पुरुष   की   नज़र    में    जननी  है |            स्त्री जननी  है  ,    इसलिए  तो  उसे रौंदा  जाता है |   लूटा  खसोटा   जाता   है   |  उसके   शरीर    को   अपना   समझा  जाता  है    |             उसे  एक एसा खिलौना   बनाया जाता है     एक   एसा     खिलौना     की   जिस   खिलोने     की  चाबी  घुमाते    ही वह पुरुष के इर्द गिर्द  ढोल बजाएगी .|  नाचेगी     गाएगी   ,उसे   प्रफुल्लित    करेगी     |कुल  मिलाकर वह  पुरुष  को आनंद  भी  प्रदान  करेगी  और   आश्वस्त  भी रखेगी |

बंद  करो  मदारी  के  ताल  पर  नाचना ,  डोर  अपने  हाथ  में  लो  |  उठो  मेरे  दोस्तों  उठो|

भाड  में  जाये  ये नाटक ,                   भाड  में  जाये  ये उपमाये  , उठो    यारा      दूसरो के  डमरू पर  नाचना छोड़ो |    बंद    करो   ये    नकली   दुग्दुगी    |

, अपने  जिंदगी  की कमान अपने हाथ में लो |
 उठो मेरी  दोस्तो  उठो |

मदारी रे मदारी |





मेरे  भाई,    पिता  , तमाम  नाते  रिश्तेदार  , कोई   भी    मेरी  बात से  सहमत  नहीं है |     वो  स्त्री  पुरुष  बराबरी में  यकीन   नहीं  करते  |    वे  नहीं  मानते  की  स्त्री  दुय्यम  दर्जे  पर है |        वे  मानते  है  की  स्त्री  और  पुरुष  की कोई  बराबरी    है  ही  नहीं     |     स्त्री   तो    पुरुष  से  कितने  ही  बातो  में  श्रेष्ठ  है  एसा  उनका  मानना  है |         स्त्री  तो   अपने  में  सब कुछ  समाये  हुए  है  |     वह  पुरुष  की  सिर्फ  पत्नी  नहीं   है   वह  स्त्री  के  रूप में  उसकी  माँ  भी  है  , बहन  भी  है  | वह  अपनी  योग्यता  से  सारे    रिश्ते    बखूबी  निबाह  ले  जाती  है  | और  पुरुष  की  जिंदगी  में  घोल  देती  है  मदिरा  |  उड़ेल  देती  है  प्यार  ही  प्यार  |

सच  है  |  कितनी  गहरी  बात  कह  गये न  ये लोग  |   स्त्री  के   इतने   सारे  रूप   |  पुरुष   भी  तो  उसकी  इस  योग्यता   पर  , इस  अदा  पर   फ़िदा  है   |  वह     भी  तो  स्त्री  के  शरीर  में  इतने  सारे   रिश्ते    देखना  चाहता  है  |  उस  पर   मर  मिटता   है   |   अपनी  पत्नी   को    माता  के  रूप  में  , प्रिय  के  रूप  में  , बहन  के  रूप  में  देखने  पर  उसे  बड़ा  सुकून   मिलता है |  एक  अलग   ही  प्रकार  के  आनंद  की  अनुभूति   होती  है   एक  ही  शरीर   में  तीनो  को  पा  लेने  पर  वे  ' पत्नी  '  को  वे  देवी  का  दर्जा  दे देते  है|     वे  तो  धन्य  हो  जाते  है  जब वे  घर  लौटते  है  स्त्री  स्वादिष्ट  खाना  बनाकर  उसका इंतजार    करती   है   , फिर माँ  की  तरह  बैठकर   उसे    स्वयं   खिलाती   है   , परोसती  है  , यकीनना    . उसे जरा  भी  माँ  की  कमी  महसूस   नहीं  होने   देती  |








 और   तो  और   बड़ी  बहन  की  तरह  उसके  कपडे    संवारती   है    | दुरुस्त    करती  है     | उसे  जरा भी , रत्ती  भर  भी  बहन  की  कमी  महसूस  नहीं  होने  देती |









  रात   को  बिस्तर  पर  थकी  हारी  पत्नी नहीं बल्कि  प्रेमिका  बन  अपने  शरीर  को , अपनी  बांहों  को  फैला  देती  है  |  और  पति  को  सुखी  कर  जाती  है  |



















 सही   है    स्त्री  के  इन    विभिन्न    रूप    में    ही    पुरुष  को  मजा   आता  है  |    जिंदगी  में  वो  स्त्री से  नाटक  करवाते  है , अभिनय  करवाते है  और फिर  मजा  लूटते  है |  तालिया  पीटते  है  |  स्त्री  जितने  अलग अलग  रूपों  में  उसकी  जिंदगी  में  आती  है  उतनी  ही  वो  उसे  रसभरी  लगती  है |  स्त्री  जीतनी  अपनी  यह  कला  दिखाएगी  पुरुष  उतना  ही  उसके  तन मन का आनंद लेगा | उसके   कला  में  रस  लेगा  |  आस्वाद  लेगा  |
  बेशर्म  पुरुष   जिस  स्त्री  पर  वो  वायलेंस  करता है , , हिंसा   करता  है  , नोचता  है  , कुचलता है . खनन  करता है , उसे ही  उसने  नाम दे  डाला   ' जननी |'         पृथ्वी  भी  तो  जननी  है |                  स्त्री  की तरह  धारण   करती  है  |        उस  पर कितने  भी  अत्याचार करो  चूर्ण -विचूर्ण  होने से पीछे नहीं हटती |






हर  वो चीज  जो  अत्याचार पर भी टूटती  नहीं  , वार नहीं  करती    पुरुष   की   नज़र    में    जननी  है |            स्त्री जननी  है  ,    इसलिए  तो  उसे रौंदा  जाता है |   लूटा  खसोटा   जाता   है   |  उसके   शरीर    को   अपना   समझा  जाता  है    |             उसे  एक एसा खिलौना   बनाया जाता है     एक   एसा     खिलौना     की   जिस   खिलोने     की  चाबी  घुमाते    ही वह पुरुष के इर्द गिर्द  ढोल बजाएगी .|  नाचेगी     गाएगी   ,उसे   प्रफुल्लित    करेगी     |कुल  मिलाकर वह  पुरुष  को आनंद  भी  प्रदान  करेगी  और   आश्वस्त  भी रखेगी |


बंद  करो  मदारी  के  ताल  पर  नाचना ,  डोर  अपने  हाथ  में  लो  |  उठो  मेरे  दोस्तों  उठो|

भाड  में  जाये  ये नाटक ,                   भाड  में  जाये  ये उपमाये  , उठो    यारा      दूसरो के  डमरू पर  नाचना छोड़ो |    बंद    करो   ये    नकली   दुग्दुगी    |

, अपने  जिंदगी  की कमान अपने हाथ में लो |

 उठो मेरी  दोस्तो  उठो |

जमाना क्या कहेगा ?

  

मेरे  कुछ  पुरुष  मित्र  अक्सrर  पेपर  में  आये  लेखो  की  बtहुत  तारीफ करते  है |  सोशल  मीडिया  पर  मै कैसे  पितृसत्ता  की धज्जिया उड़ाती  हू |  ये  बात  वो  मुझसे  फ़ोन  पर कहते है 

पर  फेस  बुक पर  सामने  आने  से  कतराते  है | 

 कुछ तो  friend  list  में  रहने  से भी कतराते है  |सामने  कुछ नहीं  लिखते  |       मै  gender  के  लिए  कितनी  भी  लड़ाई  कर  लू  .     कितना   भी लिख लू .     कितना भी छप जाऊ .     मै एक  औरत  हू  ,     भला  औरतो  की  प्रशंसा  खुले  आम की जा सकती  है  ?        और  वो  भी एक so  called  over   स्मार्ट  औरत की |   lol...            छी  छी छी |                     हम  राधे  माँ  की  तारीफ  कर  सकते  है  |                        अपना सब कुछ  न्योछावर  कर  अपने बेटे  और पति  को  बॉर्डर  पर  भेजने  वाली  माँ और  पत्नी  की तारीफ कर  सकते है |                       पर  अपने  हक़  के  लिए  खड़े होने  वाली  किसी औरत  की दोस्ती  हम खुल्लमखुल्ला  नहीं  बता सकते |     आखिर  जमाना  क्या कहेगा  ?इससे  उनकी  इज्ज़त  नहीं  जायेगी?


हमारे शहर  के  . हमारे चारो  तरफ उगे 'चरित्र  बुद्धजीवी  ' गोपनीय  ढंग से काले  कांच की  गाडियों  में घूमना  पसंद  करते  है  | गोपनीय ढंग  से    उनके  साथ शहर  के  किसी  बड़े  रेस्त्रा  में  सबसे  किनारे  वाली  टेबल  पर '  Chinese खाते  हुए  गप्पे   लडाना  पसंद  करते है क्यों  की  उनके  अन्दर  तो घिगौना  संस्कार  नहीं  है  , उनका  जीवन  तरंगहीन  तालाब नहीं , उत्ताल  समुद्र है | ये  जीवन  के  अनेक आनंद  को अपने  में  समाहित करने  में व्यस्त है |  हाँ .वे औरतो  के  कान में  फुसफुसाते  रहते  है ' मै  तुमसे  प्यार  करता हू |'  लेकिन सबके  सामने  कहते है  .' चुपचाप  रहो ' क्यों  की  'जात' में  आने  याने  प्रतिष्ठा हो  जाने  के  बाद , प्रतिष्ठीत  हो  जाने  के  बाद लडकियों  को लेकर  बातचीत करना  शोभा  नहीं  देता |
शोभा  देता  है  फेस  बुक पर 'जय शिवाजी ' के नारे लगा कर  पर्सनल  विंडो में  you are  great की रैट   लगाये  जाना | शोभा  देता  है , किसी कोने की टेबल  पर  महिला मित्र के साथ बियर  पीते हुए  ' स्त्री स्वत्र्न्तता की बाते  करना और घर  जा कर  माँ के पैर  छूते  हुए  बीवी को खाना लगाने  को कहना \

जय संस्कारी | जय शिवाजी |
 



मुझे गर्व है |

'गर्व   से   कहो  हम  हिन्दू  है  '  -ये   लिखा था  मेरे  दोस्त  के  दरवाजे  पर|





 एसे  ही    जय  शिवाजी  , जय  महाराष्ट्र |  ' के  नारे  लगाने  वाले  लोगो  में  मुझे   घमंड  की   गन्दी  बदबू   आती  है  |   इन्हें  अपने  महाराष्ट्र  पर गर्व है  , शिवाजी  पर गर्व है  | 
 ग्वालियर  के   ठाकुरों  को  अपने  ठाकुर  होने  पर गर्व  था  और  वो   ब्रह्मणों  को  कढ़ी - भात  चिढाया  करते  थे    तो  मेरे  पिता  को  अपने  ब्राह्मण  होने  पर  गर्व था |  सिर्फ  इतना ही नहीं  हमारे  घरो  में  तो  कौन देशस्थ  ब्राहमण   है  और कौन  कोकणस्थ    ब्राह्मण है इस पर  भी  इतनी  चीरफाड़  होती थी  जैसे  भारत  पाकिस्तान  के बीच  युद्ध   चल रहा हो  |  इतने  पर भी  रूकता  नहीं था  कुछ   |. देशस्थ   कैसे  कोकणस्थ  से  श्रेष्ठ  है  ये  सिद्ध  करने  के  लिये   कोकणस्थ  ब्राह्मण  पर  मजाक  किये  जाते थे    उनके  कंजूसी  के   झूठे   किस्से  फैलाये  जाते थे |   |    मेरे  भाइयो  को अपने  लडके  होने  पर गर्व था   |  अरविंद  की  माँ को गर्व  था  की  उन्होंने  दो बेटो  को  जन्म दिया  है , दो  शेरो को  . लडकियों  को नहीं | अरविंद को गर्व था की उनका  पुशतेनी   घर  मेनरोड  पर है | अरविंद   की  भाभी  को गर्व था  की उसका  रंग गोरा  गोरा  है |      मेरी  एक दोस्त है  उसे गर्व है की उसके घर में  चार चार  कार है  उसका  बिल्डर  पति  रोज  सूटकेस में  पैसे  भर कर  लाता है | | 

सगर्व  , गर्व , अहंकार   से  भरी  पड़ी है ये जिंदगी |  हर कोई अपने  अहंकार  में डूबा हुआ है  |  

एसे  ही    जय  शिवाजी  , जय  महाराष्ट्र |  ' के  नारे  लगाने  वाले  लोगो  में  मुझे   घमंड  की  गन्दी  बदबू   आती  है  |   इन्हें  अपने  महाराष्ट्र  पर गर्व है  , शिवाजी  पर गर्व है  |   तो  मेरे  पिता  को  अपने  ब्राह्मण  होने  पर  गर्व था |  सिर्फ  इतना ही नहीं  हमारे  घरो  में  तो  कौन देशस्थ  ब्राहमण   है  और कौन  कोकणस्थ    ब्राह्मण है इस पर  भी  इतनी  चीरफाड़  होती थी  जैसे  भारत  पाकिस्तान  के बीच  युद्ध   चल रहा हो  |  इतने  पर भी  रूकता  नहीं था  कुछ   |. देशस्थ   कैसे  कोकणस्थ  से  श्रेष्ठ  है  ये  सिद्ध  करने  के  लिये   कोकणस्थ  ब्राह्मण  पर  मजाक  किये  जाते थे    उनके  कंजूसी  के   झूठे   किस्से  फैलाये  जाते थे |    ग्वालियर  के   ठाकुरों  को  अपने  ठाकुर  होने  पर गर्व  था  और  वो   ब्रह्मणों  को  कढ़ी - भात  चिढाया  करते  थे  |    मेरे  भाइयो  को अपने  लडके  होने  पर गर्व था   |  अरविंद  की  माँ को गर्व  था  की  उन्होंने  दो बेटो  को  जन्म दिया  है , दो  शेरो को  . लडकियों  को नहीं | अरविंद को गर्व था की उनका  पुशतेनी   घर  मेनरोड  पर है | अरविंद   की  भाभी  को गर्व था  की उसका  रंग गोरा  गोरा  है |      मेरी  एक दोस्त है  उसे गर्व है की उसके घर में  चार चार  कार है  उसका  बिल्डर  पति  रोज  सूटकेस में  पैसे  भर कर  लाता है | | सगर्व  , गर्व , अहंकार   से  भरी  पड़ी है ये जिंदगी हर कोई अपने  अहंकार  में डूबा हुआ है  |  

मै  अहंकार  को  गलत  मानती हू  ,गर्व को नहीं | 

मुझे  भी  गर्व  है  कई  चीजों  का  |   सिर्फ  फर्क  ये है  की  मेरे लिये  गर्व की बात वो  ही  है   जिसे  मैंने  हासिल  किया है |     मेरे  खूबसूरत  घर को  हर पत्रिका      ने जगह  दी . मुझे   इस  पर  गर्व  है  |  गर्व  है   क्यों की  इसे  मैंने  खुद अपने  हाथो  से , अपने  दिमाग से दिन रात  एक कर सजाया है |   मुझे  गर्व है  अपने  parenting  पर  जिसे मैंने    नये  अयं  दिये |   मुझे  गर्व  है  अपने  homemaking पर |   मुझे  गर्व है  अपने  लीडरशिप  स्किल पर  |   मुझे  नाज़   है   मेरी  कई  चीजों  पर  |    शिवाजी   पर  गर्व  करने  जैसा  कुछ  नहीं   है  ,वो    तो तब होगा  जब  मै  शिवाजी  के विचारो  से प्रेरित होकर   उन्हें  अपनी   निजी     जिंदगी  में  अमल  करुँगी |    जिन में  मेरा  कोई  कॉन्ट्रिब्यूशन  नहीं  है  उसमे  गर्व  करने  का कोई अधिकार  नहीं है मेरा | 

और  सिर्फ  गाडियों  पर झंडे  लगाने  से  कॉन्ट्रिब्यूशन नहीं  हो जाता है  किसी देश  और राज्य के  लिये |  

मुझे  गर्व है   सिर्फ  उस पर  जिस पर  मैंने  दिन रात एक किये है |जिस  पर मैंने   कठीन परिश्रम  किया  है  |  जिसे  मैंने  सिर्फ अपने  बल बूते  पर हासिल किया  है |  इसलिए  न  मुझे  हिन्दू  होने  पर गर्व  है न ब्राह्मण होने पर | न ही  जय  महाराष्ट्र  पर  और न ही जय शिवाजी पर |


 # garv # hindu# shivaji

what is your daughter ? Straight , Lesbian or Asexual ?

  college  days  में  भी  एसी   कितनी  ही   लडकिया  मेरी  दोस्त  थी  जो  महिलाओ  के    अधिकारों  के प्रति   तब  भी   सचेत  थी  और  आज   भी  है   इतने  सालो  बाद भी  |तब  उन्हें  अधिकारों  के  प्रति  सचेत  कहा  जाता  था  पर  आज   उसे  feminist  कहा जाने  लगा है  . बात  तो  एक सी  ही  है  |

मुझे  याद  है   तब  भी  नियंत्रण  के  खिलाफ  , खौफ  था  उनमे  और  आज  भी  है  |

 आज  inequality  के  मुद्दे  बहुत  से है . division  of labor  at home . house work in office work . upbringing if children in gender  sensitive  way . time management , dealing with sexism . ----कितने  सारे  issues  से  जा  भिड़ना  है
 तब  ले  दे  कर  दो  ही  बातो  पर ज्यादा  भिडंत  होती थी   -  घरवाले  नौकरी  करने  के  खिलाफ  होते थे  या  घरवाले  प्रेमविवाह  के  खिलाफ  होते थे |  पर  पाबंदियो  का गुस्सा  तब भी था    और आज  भी  है  | husband  ने  नौकरी  छोड़ने  को  कहा  है  '  ये  वाक्य   आज  भी  बहुत  अन्यायकारक  लगता  है  |  


आज हम सब   feminist   अपने  अपने तरीको  से  हक़  की  मांग  कर ही रही है |  पर  फिर  भी  एसा  क्यों  हो रहा है   की  change  हम  अपने  ही  तरीके  से स्वीकार  कर   रहे  है  जैसे  की  अब  लडकियों  को  पढ़ने  की  . प्रेम विवाह  की  आज़ादी  दे देंगे  और  हम समझेंगे  की  हम विचारो  से स्वत्रंत  है लेकिन  इसके अलावा  किसी  और  बदलाव    को  हम    welcome  नहीं  कर  पा रहे है |
क्यों   की  जब इनकी ही   बेटिया  शादी  को  मना   कर अकेले  रहने  का  इज़हार  करती है तो  feminist  दोस्तों पर जैसे  बोम्ब   गिराती  है  |



'मधु  समझा  न इसे  "  |  अकेले  रहना  संभव है क्या ? "  शादी  कर घर  बसाने  को  बोल |   

फिर  चाहे  जिसके साथ करे  हम हा कर देंगे /

और  मै देखती  ही रहती हू, क्या  ये वो  ही   लडकिया  है  जो   choice की बात  करती थी  | 

कल  मेरी  एक और दोस्त का फ़ोन आया  |बेहद  परेशान  थी  | खुद  आत्महत्या  की सोच रही है | एसा  क्या हुआ  की  इतनी खलबल मच गयी ?
' अमिता  ने  कह दिया  उसे  लडके नहीं  लडकिया   आकर्षित करती है  | और   उसकी  एक
girl  friend  भी  है



    |


माँ  feminist  है  पर इस समय  हाल ये  है  की  लड़की  को  abnormal  मान लिया  और  नार्मल  होने  के लिये   उसे  दवाइया  लेने  को  कहा  जा  रहा है |

आखिर  इन  feminist  को  समझाने  में संघर्ष  ही करना  पड़ रहा है . की  कुछ  भी  असामान्य  नहीं  है  \  
-straight  होना  और  किसी लडके के  साथ  शादी  कर लेना  और  घर बसाना जितना   सामान्य है  उतना  ही
- अपने जैसे ही लिंग  के साथ आकर्षण होना   याने  गे  या  लेस्बियन  होना  भी   सामान्य  है  और
 किसी भी सेक्स  के  प्रति आकर्षण  न होना  याने  asexual  होना भी   सामान्य  है  |

सारे  रास्ते सामान्य  है ] बस  अपने  choice  की  बात  है  |
 

हमारे  प्रेम विवाह  हमारे  -माँ पिता  को  असामान्य  लगते  थे  क्यों  की  वो  उनके  लिए  सामान्य  नहीं थे  |  आज हमारे  लडकियों  के रास्ते  हमे  असामान्य  लगते  है  क्यों  की  वो  हमारे  लिए  सामान्य  नहीं है | क्या फर्क हुआ  फिर  उनमे और हममें ?  हम  भी तो choice  को  नकार  रहे है |



feminism    का  मतलब   सिर्फ स्त्री और  पुरुष  में  बराबरी    की  बाते  करना ही  नहीं है बल्कि
 'Feminism  is about choice "

हर  लड़की  का  अपनी  जिंदगी  पर  पूरा  हक़  है  और  ये  हक़  होना  ही   चाहिये  और  उन्हें  अपने  तरीके  से  अपनी  जिंदगी  जीने  की आज़ादी  मिलनी   ही   चाहिये   | चाहे बात  घर के  काम की हो  या  नौकरी की हो  या  बच्चे  पैदा  करने की  हो  या  सम्लेंगिकता  की हो  |

असली  feminist वो है जो  खुद  अपने  लिए  अपने तरह  की  जिंदगी  चुनती  है  और  बेटियों  को  भी  चुनने  देती  है  | 

I am proud to be a feminist mom. Are you ?

# gender #choice #equality#sexual orientation#asexual#gay |



|


ले नहीं रही . दे ही दे रही हू। हैप्पी वीमेन डे


8th  march  भी हो  गया  |

women   day  के      ढेरो  wishes |
 
पर  साथ  में  उलहाने  भी  . 'तुम्हे  क्या  करना  है  women  day  "?  .सारी  सुविधाये  तुम्हे  ही  चाहिये?  और  क्या  लोगे  अपने  झोली  में  ?


' तुम्हे  देते देते हम  तो  कंगले हो जायेंगे ? -एक  पुरुष  मित्र  ने  मजाक  किया  |  'घर  बैठकर टीवी  पर  साँस  -बहू  के  serials  तुम्हे  चाहिये | फिर  भी  बराबरी  चाहिये | 

अरे   किसने कहा   हमें  चाहिये?      मुझे  तो  नहीं  चाहिये |   नहीं नहीं  मुझे सब गलत  समझ  रहे  है  |   मै खुशिया  नहीं  मांग रही  हू  , मै  खुशिया  देना  चाहती  हू , | मै  तो  सिर्फ  देना  चाहती हू|        अपने  पास   तो    एक  आना  भी  नहीं  रखना  चाहती   मै  |  मेरी    झोली  में  जो  है  वो सब  तुम  पर  उड़ेल  देना  चाहती  हू|  देखो  मै  बराबरी  नहीं  मांग  रही  हू  |  अब  मै  सब  कुछ  तुम  पर  उंडेल  कर  कंगली  हो जाना  चाहती  हू |


--सबने  कहा  बचपन से  कहा   "औरते  ममता  की  मूरत  होती  है  "


 | प्यार  उनकी  झोली  में लबालब  भरा  है  |  तुम  तो  ममता  की  मूरत  हो  , साक्षात्  देवी  हो  देवी  |  नहीं  यार  इतना  . credit  मै नहीं  चाहती  | मुझे   अब   लेना  नहीं  सिर्फ  देना  ही  देना  है  |  सच्ची  -मुच्ची  बहुत  दे  चुके  मुझे  |  अब   आपको  देती  हू  . |    चाहिये   तो  आप    सूद  समेत  वापस  ले  ले  |        आपको  दे देती हू  ये ओहदा  |         आप बन जाये  प्यार की मूरत  |         हर बात  पर मुस्कराये . जिंदगी  के  सारे  जहर  के  घूंट  आप  पी  लो  और  साक्षात्                          भगवान   की   मूरत  बन   जाओ   |  मुझे  नहीं  बनना  है   देवी  . दुर्गा  .लक्ष्मी  और  सरस्वती   आप  बन जाये   भगवानो  के   भगवान  और  मुझे  मुक्त  कर  दे  सामान्य  जिंदगी  जीने  के लिए |  experiments  करने  के  लिये  |  गलतिया  करने  के  लिये |  गलतिया  कर   सुधरने  के  लिये  |  थोडा  तुम्हारा  और थोडा  मेरा सोचने  के  लिये |  

-मेरे  पिताजी   और  भाई  हमेशा  खाने की मेज़  पर  पहले  से   डटे  होते  थे|    मै  और माँ  उन्हें गर्म  गर्म  फुलके    बना  कर  खिलाते     और  वो  मेरी  और  माँ  के  तारीफों  के  पूल  बांधते|   कहते  जाते   'खाना  बना कर  खिलाने  में  जो  मज़ा  आता  है ,  .जो  ख़ुशी  मिलती  है  , वो  ख़ुशी  दुनिया की किसी  चीज़  में  नहीं    | कितनी  ख़ुशी  मिलती    होगी  न  मधु  तुम्हे ?  कितना   आत्म-संतोष  महसूस  करती  होगी  न  तुम  |   ये   ख़ुशी  भी  मै  अपने  पास  रख  लू  ?  अब  मै  इतनी  स्वार्थी  कैसे हो सकती हू  की   सारी     खुशिया  अपने पास  रख  लू  |
चलो    ये खुशिया  तुम्हे  देती  हू   |.आज से  गर्म खाना   बना  कर  परोसने  में  जो  सुख  मिलता  है  उसे  तुम  रखो  मुझे  देने  इतना  एहसान मत करो ||

  --हम  औरते   बहुत  बड़े  काम  कर  रही  है  .बच्चो  को  बड़ा  कर  रही  है  | एक  नयी  पीढ़ी  गढ़  रही है |  इतना  महत्वपूर्ण  काम कोई  कर  ही  नहीं सकता |  पुरुष तो  कभी  नहीं  |  फिर  से तुम मुझे  इतना  स्वार्थी  मत बनाओ  की  बहुत   महत्वपूर्ण   काम  मै  अपने  जिम्मे  रख लू  और  तुम्हे   उबाऊ  काम सौप  दू  |  नहीं  यार  . इतने   selfishness  के   ओझे  मत  दो  मुझे  .ये  जिम्मेदार   काम  भी  तुम  अपने  जिम्मे रख  लो  |  बच्चो  की  परवरिश  करो  . देश  की  पीढ़ी  को  गढ़ाओ  और  सुख  अपनी  झोली  में  भर  लो | जिंदगी  का  सबसे  imp  portfolio   मै   तुम्हे  देती  हू  जिससे  उन्हें  बड़े  करने  का  सुकून   तुम्हे  मिल  सके  |  'घर  '  नाम के  इस imp  portfolio  से  सिर्फ  तुम्हारा  और  तुम्हारा  नाता हो  | ,

-  तुम  औरते  अपने  आप  को  कम  क्यों  समझती  हो  :, मधु  ?  "  तुम लोग  तो  multitasker  है  |  हमारे  corporate  world  में  तो  सीखाया  जाता  है  की  multitasking  भारतीय  औरतो  से सीखो  | ----भारतीय  औरतो  से  सीखो  managerial   skills   ;  

ये  तो  बहुत  बड़ा  portfolio  है  .  आपस में  जलने  वाली  औरते  इतनी  बड़ी जिम्मेदारी  नहीं  निभा  सकती  | तो  ये ख़ुशी  भी  तुम ले  लो  यार  |  तुम multitasking  करो  और  managerial  skills की  मिसाल  बनो|
 अपने  corporate world में  मै  भी  फक्र  से कहू  multitasking    सीखना  है  तो  भारतीय  पुरुष  से  सीखो  |


 -तुमने  मेरे  सुरक्षा  की  जिम्मेदारी  ली  है  , तो अब मुझे  लेने दो  | मै  बाहर  की दुनिया  संभाल लूंगी  और बदले  में  तुम्हे  सुरक्षा देना  चाहूंगी |
 ' हर  सफल  पुरुष  के  पीछे  एक  औरत  होती  है  "  नो यार  अब तो  मुझे  तुम्हारी  सफलता  के  credits   भी   नहीं  चाहिये|  मै  ये   ओहदा  तुम्हे  देना  चाहूंगी  |  मै  फक्र  से  कहूँगी  , ;

'मेरी   सफलता  का राज  मेरे पीछे  खड़े  उन  पुरुषो  को जाता  है  जिन्होंने  मेरी  देखभाल की |  मेरी  care  की  |
'

  सारे  laws तुम्हारे  साथ है  और  तुम  इसका  दुरूपयोग  कर रही हो | फिर  भी  स्त्री स्वतंत्रता  की  बात  कर  रहे हो ?---  मेरे दोस्त  के  वही  उलाहने | बार  बार |
नहीं  यार  सच पूछो  तो  मुझे  मेरे  लिये  कायदे  -कानून  भी  नहीं चाहिये
ये  सड़के  मुझे  दे दो . ये   mobility मुझे  दे दो  |   शादी  के  बाद  मेरे  घर तुम  आओं  |मेरे माँ  -पिता  को  तुम  संभालो  \त्याग  और  पवित्रता  की  मूर्ति बन जाओ  |  और  सारे  कायदे   जो  मेरे  हक़  में  है  वो  मै  तुम्हे  देती  हू|  

plz  आज के बाद  मत  कहना  feminist  हू  demand  कर  रही  हू  |  दे  ही  दे  रही हू  | अब  सिर्फ  तुम्हारे  लेने  की  बात  है  | 

  

Smile Please

---दिशा  की  डॉक्टर  अपॉइंटमेंट  है  उसे  याद दिलाना  है  |  ---अरविन्द को मसाले  खाने  से   मना  किया  है  , सादा  छोका  लगाना  है  |   ------- कल   family  friend  आ  रहा  है  उसे postal  add  with  डायरेक्शन watsapp  करना  है  |   ------- दिशा  को  kk  बुक  करने  का  रिमाइंड  करना  है  |    -----एक  एक्स्ट्रा  चाबियों  का  गुच्छा  मिल  नहीं  रहा  उसे  ढूंढ  कर  रखना है  |   -------दिशा  का बर्थडे  है  कैसे स्पेशल  करे इसे  प्लान करना है |    ------- deek को  vitamin  D  लेने  के  लिये  remind  करना  है  |  ------  '' अरविद  दस  दिन  बाहर  रहेगा  , out  station  . अपने  और  घर  के  कामो  के साथ  उसके  भी  बहुत  से काम देखने है   |
   

एसी  भाग दौड़  आपके  साथ  भी  होती  है  ?      

  of course इससे  कंही  ज्यादा  |           कभी  सोचा  है घर  के  physical  कामो  के  अलावा  एसे  कितने  ही  काम  औरतो  के  पाले  में आते  है |    सिर्फ  खाना बनाना ही नहीं  बल्कि  उसके  साथ  क्या  खत्म  हो  गया  है  , उसकी  लिस्ट   |    -- क्या  होलसेल  से लाना है  ,  ---किसकी ऑनलाइन आर्डर  देनी है  . , ---- क्या ख़राब हो रहा है ,  ---- कौन सा   bulb  फ्यूज  हो गया है   .  ----- किसकी कब  exam   है  .------किसका  मूड ऑफ है .    -----किसकी  पार्टी है  इसलिए  ड्रेस लांड्री  से  मंगाना  है ,   ----    husband  को बोला था  पनीर लाने  के  लिये  , वो भूल गया  | चलो  माफ़ किया  | थका आया है  , -----म्यूजिक प्ले   कर  देती  हू  ,कॉफ़ी  बना  देती हू|



 थक  गयी  हू  भूख  लगी  है  पर    मेरा  बच्चो  के  सर  पर हाथ  फेरना  जरूरी  है , क्यों  की  वो  थके आये  है  |



इसमे  actual  खाना  पकाना  , कपडे  धोना  जैसे   शारीरिक  काम  नहीं   है  , लेकिन  किसी  को  ख़ुशी  देने  के लिये  काम  हो  रहा  है  |  |  हम  जो  कुछ  फील  कर  रहे है  उसे  बाजू  रख  जब  हम  अगले  व्यक्ति  की  ख़ुशी  के  लिये  अपने  भावनाओ   का  मैनेजमेंट  करते है  , यानि   emotional  मैनेजमेंट  , emotional  labor .        उदा   -----'  ससुर  ने  सुबह  ही  नाश्ते  में  हलुआ  की  मांग  कर दी  |   इतनी  भाग  दौड़  .. उसमे  हलुआ  ?               जो बना  है  वो  क्यों  नहीं  खाते ?   लगा  सर  पर  कूकर  दे   मारू  \   पर husband  के  ऑफिस  का        समय  है . बेटे    की  exam  है  .बेटी  का  मैच  है |  घर  का  माहौल  नहीं  ख़राब  कर सकते  . इसलिए  मुस्कराकर  कह  दिया  '  अभी बनाती   हू  ,    पांच  मिनट|                  
 emotions   का  ये    लगातार  shifting  औरतो  से  लगातार  emotional labor  करा  रहा  होता  है  जिसका  कोई  वेतन   नहीं  होता  |    कोई  आइडेंटिटी    नहीं  होती  |   कोई recognition     नहीं  मिलती  |


 This  is  another   form  of   stress |
Emotional labor  का  साधा  सा  अर्थ  है  की  हम  जो  महसूस  कर रहे  है  वो  genuinely  express   नहीं  करते ,    ईमानदारी  से  अभिव्यक्त   नहीं  करते    , हम  परेशान  है  तो  भी  ख़ुशी  ही    अभिव्यक्त  करेंगे  | क्यों  की     घर  का  सदस्य  खुश  रहे  |  service  industry  है  तो  customer   खुश  रहे  |
एसे  कितने  ही  अनगिनत  काम  है  जिनमे  हम   अपनी  भावनाओ  का  ,  अपने emotions  का  हर  पल  इस्तेमाल  कर  रहे  होते  है  |     जो  थकाने  वाले  होते  ही  है  साथ  ही  किसी  को  नज़र  नहीं  आते  , बड़े  आसानी  से  घरवाले  कह  देते है
 " दिन भर  क्या  काम  था  ? थका  तो मै हू  |

This  management  of emotions for family  ,childcare is another form of unpaid work . Its  like PR strategy  for home and family members

(Emotional labor, or the work that goes into expressing something we don’t genuinely feel, is one of sociology’s central concepts. It was first introduced in 1979 by Arlie Russell Hochschild, whose book the Managed Heart argued that, being all smiles when we’re sad, or pretending to care when we’re indifferent, does little good for our psychological well-being.)

for ex  -  हवाई  सुंदरी  ,नर्से    , receptionist  जिसे  हर  हाल  में   चेहरें  पर  मुस्कराहट  रख  कर  ख़ुशी  बिखेरनी  है  | ये  व्यवसायीकरण  है  उस  काम  का  जो  औरतो  से  घर  में  अपेक्षित  है  |  
१  )     घर  में  emotional  labor = अच्छी   औरत  |२)       घर  के  बाहर  एसे  काम  = gendered  role (  जो  औरत  घर  में  करती  है  वह  बाहर  भी            करे  )     औरते   भी   हर  हाल  में    घर  में  ख़ुशी   बिखेरती  है है   जिसके   बदले  कोई वेतन  नहीं  मिलता  . जब  इस  emotional  labor  का व्यवसायीकरण  होता  है  तो वंहा  भी औरते ही होती है  |   
     १)         गरीब  और  मध्यम  वर्ग  में  जंहा    घरो  में  नौकर  नहीं  है  ,  और  औरते  औरते  घर                    के   बाहर       भी  वेतन  के  लिये  काम कर  रही  है  
 औरते  जरूरत  से      ज्यादा  काम                    कर    रही है         a )  बिना  वेतन  का  काम  _शारीरिक  - खाना  पकाना  आदि        b)  वेतन  के लिये  बाहर                    काम  c)  community  work  -ex  -कोई  रिश्तेदार   बीमार  है  उससे  मिलने जाना                c)   emotional labor --घर  की  ख़ुशी  के लिये  अपने  emotions  control में  रखना  |            economic  status  के  अनुसार  सिर्फ   physical work  नौकरों  से  replace  होता है                  बाकी  काम  तो  औरते  करती  ही  है  
  ये  emotional labor बहुत थकाने   वाला  होता  है  और  इसे  legitimate   strain   के  रूप  में  में  भी   स्वीकारा नहीं जाता |
और  बाहर  की   service industry  भी  औरत  से  '  service   with  a  smile  की  अपेक्षा  करती  है  |हम    औरते  जानती  है   की  ये  हमारा   authentic  self   ,   नहीं  है    लेकीन   हम  कंधे  उचका  कर  कह  देते है  'we  do  not  have  choice " 
क्यों  की  घर  से  थोडा  भी  detachment  की  मै  कल्पना  भी  नहीं कर सकती  , मेरे बगैर  ये  घर  पागल खाना हो जायेगा |  


सच  है  |  बिलकुल  सच  |    detach   ना  सही , shaking of  patriarchy    न  सही  पर  अब समय  है   जब  किसे  खाने  में  क्या  पसंद  है  इसे  भूलने  का  और  मुझे  क्या  पसंद  आयेगा  ये याद   रखने  का  |----- सब की   success  सेलिब्रेशन  भूलने  का  और  hard  work  के  लिये  अपनी पीठ  थपथपाने  का | ---- चाबियों  का दूसरा  गुच्छा  न  मिलने  पर  guilty न  फील  करने  का   |  lets  celebrate our hard  work  . cheers 


#  gender#inequality # emotional labor# unpaid emotional labor # commercialization  of emotional labor # emotional labor and home maker 





Translate

follow me on face book