My name is vagina



दिल्ली की घटना ने दिल्ली का नहीं , पुरे देश का दिल दहला दिया है | शर्म से सिर झुका दिया है |
दोस्त कहते है , " क्या कहती हो मधु दिल्ली की घटना के बारे में ? "
"क्या कंहूँ दोस्त , जिस घटना से आंखे भर आये , दिल दहल जाये रोंगटे खड़े हो जाये , कलम चलने से इंकार कर दे , ओंठ कुछ भी कहने से डरने लगे , उससे भयानक और बदतर कुछ भी नहीं हो सकता | कुछ भी नहीं | शायद मौत भी नहीं |
शर्मनाक हू दोस्त , | बेहद शर्मनाक |
शर्मनाक हू अपने लिये , हम सबके की लिये |
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 औरत पर हो रही लगातार हिंसा अचानक नहीं उठ खड़ी हुई है , यह है हमारे हिन्दू संस्कार , आदर और शील का प्रतीक हमारा धर्म औरतो के साथ दुर्व्यवहार तो हमारे खून में है | यही तो है ,हिन्दू मर्द की असली पहचान |
जिस समाज , धर्म और संस्कृति के नाम पर ततैया काटे की तरह चिल्लाते है हम उसके प्रतिनिधि हम क्या करते है ??? पुरुष को उसकी सम्पूर्णता में देखते है , उसकी कमियों , खामियों समेत | पर औरत को ??? कभी किसी स्त्री को उसकी सम्पुरनता में नहीं देख पाते , हमने कितनी बेदर्दी से उसे दो हिस्सों में बाट दिया है
'कमर से ऊपर की स्त्री '
और
'कमर से नीचे की स्त्री '
कमर से ऊपर की स्त्री महिमामयी है | ममतामयी है |त्यागी है | ममत्व की प्रतीक है |शील की देवी है |कविता है ,
|संगीत है |
पर कमर के नीचे वह कुत्सित है , काम मन्दिरा है ,राक्षसी है ,अश्लील है ,वासना है और यही कारन है की औरत के प्रति हमारी धारण भी दो तत्वों से बनती है आदर ,प्यार और भय और घृणा |
जब हम कमर के ऊपर की स्त्री के साथ होते है तो उसे सामने रखकर चित्र बनाते है , कविताए लिखते है , गीत सजाते है | कविताओ का जन्म होता है |कलाओ की श्रुष्टि होती है |महामाई स्त्री अलाकारित होती है , लेकिन जब दर्शनशास्त्र और धर्म की बात होती है ??? तब सिर्फ कमर के नीचे की स्त्री को याद करते है और उसे कुत्सित , बेकार , भयावह समझ कर बहार कर देते है | इस fear और contempt की वजह से एक mystification और mystrification पैदा होता है और इसलिए समाज ने जिस चीज़ को सबसे ज्यादा कुचला और पालतू बनाया है --वह है औरत |उसने बकाया स्त्री को नियंत्रण की रेखा में रखा क्यों की पुरुष हमेशा उसकी स्वतंत्रता से डरता रहा है और इसलिए उसे ही बाकायदा अपने आक्रमण का केंद्र बनाये रखा | अखंडता में और सम्पूर्णता में नारी अजेय है , दुर्जेय है वह दुर्गा है , वह स्त्री शक्ति है जो स्वछंद है , स्वतंत्र है |इसलिये समाज ने उसे ही तोडा है | आदमी ने हर तरह की कोशिश की है की किस तरह उसे परतंत्र और पालतू बनाया जा सकता है |तभी " second sex " में simont dibaur कहती है
" औरत पैदा नहीं होती ,
बनायीं जाती है |"                                                                 
                                                                                                                       


                                                                      





 

पुरुष ने यह मान लिया है की औरत , सेक्स है शरीर है और वही से उसकी स्वतंत्रता है | वही से उसके स्वतंत्र व्यहवार , स्वतंत्र चेतन पैदा होती है , स्वचंद्ता पैदा होती है , इसलिए वह हर तरह से उसके sex को नियंत्रण करने की कोशिश करता है |सामाजिक आचार संहिताओ और मनु सूत्रों से लेकर व्यक्तिगत कामसूत्र तक औरत को जीतने की कलाए है | क्या यह आकस्मिक है की औरत को गुलाम बनाने के लिये अनगिनत वशीकरण मंत्र , साधनाए ,आसन है पर क्या कारण है की औरत की कामशक्ति बढाने के लिये कोई भी " काम सूत्र " नहीं है |
शायद यही मन गया है की औरत स्वयम ही काम है , उसे ही कुचलना है |नियंत्रित करना है |
शरीर ही औरत की एकमात्र पहचान है |वह गुण भी है और गाली भी है जब तक वह पुरुष के नियंत्रण में है स्त्री एक गुण है , जब वह नियंत्रण के बाहर है वह एक गाली है ' सिर्फ एक गाली "








भय और आशंका से प्रेरित जितना ही पुरुष रूपी यह समाज अध्यात्मिक और मानसिक रूप से कुचलता जा रहा है , उतना ही स्त्री के स्वतंत्र रूप से स्त्री की घृणा बढ़ती जा रही है|
पन्त जी ठीक कहते है ,
"योनी मात्र रह गयी औरत "



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स्वतंत्र स्त्री के प्रति यह घृणा सिर्फ दिल्ली की सड़को पर , बसों तक सिमित नहीं है | यह हर शहर , हर सडक और हर घर में मौजूद है |यहाँ तक की दफ्तरों में भी | misogyny इस very common , which menifest into power -struggle ,discrimination , voilence sexual objectification of women .
लढाई रैलियों से नहीं खत्म होने वाली है इसके लिये शुरुआत हमारे अपने घरो से , घर में बहने वाले हर शब्द से , हमारे मूल्यों से , हमारी अपनी बातचीत से , हर पल गैरबराबरी के लिये आगे आने वाले संघर्ष से संभव है |

तेरी ,,,,,,,

न दिनों गालिया मेरा कुछ ज्यादा ही ध्यान आकर्षित कराती है |
रास्ते पर , बस में ट्रेन में . हर जगह मजाक में , बातो -बातो में . गुस्से में , छेड़ -छाड़ में . छोटी -मोटी दुर्घटनाओ में
''तेरी माँ की ........' यह सुनाई दे ही जाता है |
सच में मन करता है एक पूरा गली कोष बनाऊ.|" कम्पलीट डिक्शनरी ऑफ़ डर्टी वर्ड्स " इस डिक्शनरी में बहुत आयाम पर गौर किया जायेगा , मसलन , गलियों का और power का क्या समीकरण रहा होगा ? पुराने ज़माने में गलियों का स्वरुप क्या रहा होगा ?अकबर को गुस्सा आता होगा तो वह कैसी गाली देता होगा
"जुर्रत की तो हाथियों से चुनवा दूंगा वगैरह वगैरह |" पर फिर आम आदमी कैसी भाषा की गाली देता होगा ??
शिवाजी के समय में कैसी गालिया प्रचलित रही होगी ? ' मैंने कोई चूड़िया नहीं पहनी है " जैसी कहावते कंहा से ई होगी ??
औरते कितनी ही प्रतिभाशाली हो , पुरुष को वह अबला ही लगती है , और इसी नज़रिये के चलते " गाली " पुरुष की कमाई है , उसकी निजी कमाई और उसका भूषण |
मुझे लगता है हमारे देश की तक़रीबन सभी गालिया औरतो के शरीर को लेकर है , स्त्री के कुछ खास अंगो को लेकर है |ये सभी गालिया सामंती मानसिकता और पुरुष अहंकार की निरंकुश घोषणाए है |इसमे स्त्री की देह , उसका यौनाचार से लेकर उसके रक्त से जुड़े वर्जित संबंधो के रहस्योघाटन और सामाजिक धिक्कार पर फोकस होता है |ये सारी गालिया पुरुष की असमर्थता , अक्षमता और अपर्याप्तता या स्त्री की कामुकता और कामंधता को लेकर है |
समाज ने दिए हुए सामाजिक ,नैतिक संस्कारो के बीच स्त्री के सम्बन्ध और उसकी देह जीतनी गोपनीय है उसे उतना ही सार्वजनिक बना कर गलियों के माध्यम से उसे जलील किया जाता है }
देखा जाये तो गाली यह शब्द शक्ति का रूप है , सीधे -सीधे पॉवर से जुडा है | गाली देने वाला गाली के माध्यम से सामने वाले की चेतन को चीरकर आर-पार हो जाता है |गाली सालो से करोडो व्यक्तियों द्वारा भाषा की दी गयी चमत्कारी तराश है | मुहावरों ,कहावतो , व्न्ग्य बाण से कंही ज्यादा ताकतवर कोड़ा | पुरुष ने महिला के गोपनीय अंगो पर फेंका गया जबानी कोड़ा न कहे ही हमारी मानसिकता बया कर जाता है |


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