Sorry I love me more than you ....








Between my clients n friends I am constantly surprised by just how hard it can be for  a woman to show ourselves little love 


Why we feel unworthy of loving ourselves ?

Why we feel guilty if are not constantly love others ?


Why it is so tricky to kind to ourselves ? 


         yes   ,we need to love ourself if we want to love others .
























Lets start from just your notebook everyday .




1) Just write down  list of your positives and read it aloud everyday for you 

(Ex I am very good at remembering birthdays , my handwriting is beautiful)







2)Creat a list of efforts you made for your family's betterment , and read it aloud .

Ex (-i cleaned table when he was in hurry , i kept cool when he was in tension and having work pressure )

3)Write nice things about your physical beauty and read it aloud 

(Ex My eyes are expressive and hair are silky )

5)Writedown five  ways how you will take care of yourself before the day starts 

(Ex-I will buy classical cd for myself and  I will have a cup of coffee at CCD because i love it )



4)write a list of things , you are grateful about "Who you are " 

(Ex I am grateful about myself because i can not say yes when i want to say no )

6) Try to write down your negative words with positive words .

(Ex instead   i am poor driver say I am making effort for skillful driving )



7)write  name of few women whom you admire and why 

(Ex I like shobha day because she carries herself verywell )

8) write two name of women whom you like , make a call n say hello to them .

(Ex Today I will spare time from my household routine and call my childhood friend because it gives me pleasure )

9)write 'choose to ' instead 'have to ' >

(Ex- Instead I have to be 'Stay-at home mom ' you can say ' I choose to be stay at mom so ownership goes with you and you feel responsible and contended )


10) write one quality atleast "why anyone will fall in love with u " 

(Ex Anyone can fall in love with me  the way I greet others and the way I make others comfortable) 


And in the end
 


मै शेर बाकी सब ... मी मराठी माणूस !





बाल ठाकरे का निधन और भारत का दिल . इस पर सचमुच बलिहारी हो जाने का मन करता है |
face book  ,messages ,समाचार . और उससे जुडे emotions , मुझे , अलग अलग भाषा में एक ही संदेश दे रहे थे
" मी मराठी माणूस "
'मी शेर बाकी गिधाड "
" महाराष्ट्र अगर है है तो मराठी कि वजह से |
मेरे एक मित्र ने मुझे अपने friendlist से निकालने से पहले सवाल किया था
" मुझे अभिमान है कि मै मराठी हू , श्रेष्ठ हू , संवेदनशील हू , और जाती प्रांतो कि तरह " गिधाड " नही हू |
आखिर सवाल  किया था
" क्या तुम मराठी नही हो ?" क्या तुम्हे गर्व नही है अपने मराठी होने का ? "
मैने कहा था .
" हा मुझे गर्व ही नही अहंकार भी है अपने मराठी होने का "

आज. मेरे दोस्त मै कारण बताना चाहती हू , कि मै क्यो श्रेष्ठ हू |हां तक मेरी बात करू मै किसी ईश्वर में विश्वास नही करती , मै कोई पूजा पाठ नही करती , धर्म के नाम पर कोई दान -धर्म नही करती , याकिनन देश के सारे मंदिरो को अस्पतालो ,स्कूलो , और बच्चो के खेलने की जगह में बदल दिया जाये तो मुझे कोई आपत्ती नही होगी |
फिर भी मैं हिंदू हू और उससे से भी बडी बात की मै मराठी हू | क्यो की मै कैसा भी हू , सांप्रदायिक दंगो में हिंदू होने के नाते बचा लिया जाऊंगा और महाराष्ट्र में ' मराठी माणूस ' होने के नाते सारे हक की हकदार में भागीदार होने का हक़ भी मुझे मिलेगा |और शायद यही कारण है कि मै हिन्दू हू और मराठी माणूस हू |
मै चाहे जो भी करू मुझे गैर प्रांतीय होने के नाते अपमानित नही होना पडेगा ,| मै ठाकरे पर यदि कोई status डालती हू ,तो मुझे एक बार , सिर्फ एक बार तो भी मराठी माणूस होने के नाते बक्ष दिया जायेगा |
यह बात तो है मेरे मराठी होने की , अब छोटा सा कारण मेरे दोस्त की मुझे मराठी होने पर गर्व क्यों है ???

हाँ मेरे दोस्त मुझे गर्व है की मै मराठी हू कारण सिर्फ इतना ही है की मुझे दूसरे धर्म और जाती से घृणा है | यदि एक नदी , नाला और पहाड भी किसी राज्य को मेरे राज्य से अलग करता है तो मुझे उस राज्य से भी नफरत है |चाहे वह राज्य मेरे ही देश का क्यो हो
सचमुच मेरा धर्म , मेरा राज्य और मेरी जाती इतनी महान है की उसकी महानता पर बोलते हुए मेरा गला रुंध जाता है , सारी दुनिया मुझे किडे -मकोडो सी दिखाई देती है |मेरे अपने देश के दूसरे प्रांत भी मुझे किडे -मकोडे, सियार और गिधाड दिखाई देने लगते है |सचमुच मेरी जाती, मेरा राज्य इतना महान है की इसकी बात करते समय मेरा गला रुंध- रुंध जाता है , मुझे दूसरे धर्म के लोग कीड़े -मकोडो से दिखाई देने लगते है यंहा तक की मेरे ही देश के दूसरे प्रान्त के लोग मुझे गिधाड नज़र आने लगते है |
सच भी तो है बाकि सब गिधाड है ,शेर तो मै हू मराठी माणूस | मै जात -पात नहीं मानता ये बात अलग है की सिर्फ शर्मा -वर्मा , अंसल -बंसल को उनके खाके में फिट करने में लगा रहता हू |
यह बात बिलकुल अलग है की मुझे इन्सान को इन्सान मानने की कोई तमीज नहीं , अलग धर्मो की तो बात ही छोड़ दे भाई जान , मै तो अपने ही देश के दूसरे जाती और प्रान्त के लोगो का भी खून पिता हू . मै सिर्फ शेर नहीं आदमखोर शेर हू | यही मेरे लिए गर्व कि बात है |
फिर मुझे गर्व है की मराठी हू क्यों की मै सामने वाले के साथ उसकी जातीयता और प्रांतीयता देखने के लिए अभिशप्त हू | अरे गर्व से कहो मै मराठी हूँ , क्यों की हर जाती और प्रान्त के लिए मेरे पास पहले से तय फोर्मुले है , और उस जाती और प्रान्त के हर व्यक्ति के साथ मेरा रवैया उस फोर्मुले से तय होता है |
" शेर का बच्चा है तो गुर्रायेगा , वो गिधाड नहीं | हर दूसरी जाती को टुच्चा सिद्ध करने के लिए मेरे पास कितने शब्द -कोष है , कितने मुहावरे है , लेकिन सच तो ये है की मेरे अवचेतन मन में "इन्सान " नाम की कोई जगह नहीं , किसी इन्सान के व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए कोई जगह नहीं , मेरे लिए आधारभूत है जात | मै मराठी माणूस मुझे गर्व है मराठी होने पर क्यों की मेरे लिए मानव जाती महत्व पूर्ण नहीं है , मेरे लिए उसके कर्म महत्वपूर्ण नहीं है , मेरे लिए महत्वपूर्ण है तो किसी व्यक्ति की जात | मेरे लिए सिर्फ एक ही बात 



महत्वपूर्ण है की वह कंहा पैदा हुआ
और यंहा मुझे आखिर स्वीकार कर ही लेना चाहिए की मै कितनी भी दार्शनिक और धार्मिक बकवास कर लू मुझ जैसा क्रूर और टुच्चा कोई नहीं | मेरे जैसा संकीर्ण और गिरा हुआ व्यक्ति शायद किसी देश और किसी राज्य मै नहीं | मै तो जन्म के आधार पर ही लोगो की योग्यता और उनके हक़ तय कर रहा हू |लोगो को लोगो में जात के आधार पर बांटकर उनके कद तय करना ही मेरे संस्कार है | यह मेरे संस्कार ही नहीं ,मेरे गर्व के लिए एकमात्र अनियार्य शर्त है | छि: छि गिधाड नहीं शेर हू मै |
मै मराठी मानूस मूलतः अत्मान्ध हू , पश्चिमी सभ्यता और अमेरिका मे काले गोरो के अत्याचारों पर छि : छि : करता हू पर वास्तव मे मै घुसखोर |और दु-मुहे चरित्र का हू |ढोंग और आडम्बर मेरे जीवन की अनिवार्य शर्त है |
मै शेर हू क्यों की मै व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन की नैतिकता को कभी एक नहीं होने देता | मै नकली चीजे बनाता हू ,जीवन रक्षक और जीवन के अनिवार्य चीजो मे मिलावट करता हू , मेरे राज्य मे लडकियों की संख्या दिन -- दिन गिरती जा रही है , मेरे राज्य मे सबसे ज्यादा ब्लू-फिल्म्स बनती है . मेरे राज्य मे माफिया का राज है , लेकिन यह तो मेरा व्यवसाय है इसका मेरे व्यक्तिगत जीवन से क्या लेना देना ?????
अंत मे मै यही कहूँगा की मै मराठी माणूस मुझे मुझ पर गर्व है | मै दूसरे धर्म . प्रान्त और जाती के लोगो की तरह violent ,नहीं हू मै तो सिर्फ callous हू यार | मै बन्दूक और छूरा नहीं मारता मै तो सिर्फ जलाता हू या डुबाता हू | एक तीली या एक धक्का बस इतना ही , इसके बाद तो धक्का संभाल लेगा या तीली |
मै मराठी माणूस सांप्रदायिक नहीं हू , मैंने सबको गले लगाया है | मै सम्प्रक्दायिक कैसे हो सकता हू ???
सांप्रदायिक तो वो है , मै तो सबको गले लगाता हू | मै मराठी मानूस , शेर बाकि सब गिधाड |


उगलती हूँ घृणा

सबकी जो सुनी ' लजीली कहा "
मन की जो सुनी 'हठीली ' कहा |

 

--मै मूलतः म. प्र . के एक छोटे शहर ग्वालियर से हूँ | वहां के माधवगंज मोहल्ले मे ही मेरा बचपन और युवावस्था व्यतीत हुई है |सारी शाम गिल्ली -डंडा , सितोलिया और लुका -छिपी खेलते हुए वंहा बचपन बीता है |मुझे अब भी याद है , खेल के बीच मे ही मां की आवाज सुनाई देती ,

" घर मे चाय ख़तम हो गयी है "
" अदरक का टुकड़ा ला देना "
'' दौड़ जा और धनिया ले आ रुपये ,दो रुपये की "

और मै दौड़ कर परचून की दूकान तक जाती और छोटे -मोटे जरूरत की चीजे लाकर म़ा को पकड़ा देती और फिर खेल की टोली मे शामिल हो जाती |


फिर एक दिन अचानक मुझे उस परचून की दुकान पर जाने से रोक दिया गया |
अचानक मुझे क्यों मना किया इसका कारण जानने पर पता चला की
"मै बड़ी हो गयी हूँ | "

अब मै बड़ी हो रही थी और इसके साथ -साथ मुझ पर रोक -टोक भी बढ़ रही थी |


'सहेली के घर क्यों जा रही हो ?"
' 'सड़क पर तुम जिससे बात कर रही थी , वो कौन था ?"
'अपनी सहेली के साथ उस दिन तुम सड़क पर जोर -जोर से क्यों हँस रही थी ?"
फिर तो जैसे रोक -टोक का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया |

"बाहर आने जाने की मनाही |"
"फिर , खिड़की से देखने की मनाही |"
"फिर , छत पर खड़े होने की मनाही |"
"फिर स्कर्ट पहनने की मनाही '"

no , no और सिर्फ no

तू खुद को बदल ,खुद को बदल
तब ही तो जमाना बदलेगा |.



१)एक बार स्कूल से आते समय एक हमउम्र लडके ने मेरे हाथ मे एक कागज का टूकडा थमा दिया था | जब मैंने उसे खोलकर पढ़ा तो उसमे लिखा था की मै उसे बहुत अच्छी लगती हूँ और मुझे देखने के लिए वो सुबह शाम मेरे स्कूल के रस्ते पर मेरी राह ताकता है |
जब किताबो के बीच घरवालो के हाथ यह प्रेम- पत्र लगा तो उन्होंने मेरी जमकर पिटाई की थी | आज भी मेरी सवालिया नज़ारे सबसे पूछ रही है " "आखिर मेरी खता क्या थी ?"

२)एक बार गलती मेरा भाई उसके सिगरेट का पेकेट कमरे मे भूल गया था और मुझसे नहीं रोका गया और मैंने सिगरेट का एक कश लगा लिया था | फिर मार मुझे ही पड़ी थी , मेरे भाई से किसी ने नहीं पूछा की कमरे मे सिगरेट कहाँ से आयी ?
३)एक बार मेरे भाई से मेरी जोर -जोर से बहस हो रही थी | हम दोनों के आवाज अपनी चरम सीमा पर थे | थोड़ी देर के बाद मां ने आकार मुझे चुप रहने को कहा | लड़कियों को इतनी जोर से बात नहीं करनी चाहिये | आज तक मै अपने भाइयो के साथ किसी बात पर बहस नहीं कर पायी |

४) मुझे आज भी ताश खेलना बहुत अच्छी तरह से आता है |लेकिन जब कभी मेरे भाई ताश खेलते मुझे पास फटकने नहीं दिया जाता | मै शर्त लगा सकती हूँ की यदि मै यदि अपने भाई के साथ अब भी जुआं खेलने बैठू तो उन्हें आसानी से हरा सकती हूँ |
४) मेरे घर पर एक बार मेरे दो पुरुष मित्र आये | मेरे मां पिताजी ने उनके अभिवादन का जवाब नहीं दिया | भाई ने उनके स्कूटर के पेट्रोल मे चुपके से शक्कर मिला दी | मुझे लगा मै एक कप चाय से उनका स्वागत करूँ , पर मै एसा कर नहीं पायी | दूसरे ही दिन मेरे भाई की एक महिला मित्र आयी थी पिताजी ने उससे नाम पूछा था और मां ने उसे हलुआ बना कर खिलाया था |

कितनी बाते बताऊँ , शायद पूरी जिंदगी निकल जायेगी बताने के लिये |
सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ की अब अपने जीवन मे मै कोई बंधन , मनाही नहीं चाहती | जब तक ये बंधंवादी की मनाही का सिलसिला चालू रहेगा ,तब तक इन बंधंवादियो की तरफ मै उगलती रहूंगी ,


घृणा !

घृणा !!

और सिर्फ घृणा !!!







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