''क्या हिंदुत्व का रंग काला है ???"

त्रिम्बक रोड से गुजरकर , मुझे अपने writing unit जाना पड़ता है | श्रावण का महिना और त्रिम्बेक्श्वर का रास्ता , कल्पना करना भी मुश्किल है की देश भर की कितनी गाड़ियाँ दिन भर इस रास्ते पर चलती है |
देश के कोने कोने से आये श्रद्धालु .,इन रास्तो पर वहां चलाते समय इतने हिंसक कैसे हो जाते है समझ नहीं आता आता | उनके वाहन का आवेग संभाले नहीं संभालता | इन टूरिस्ट का जरूरत से ज्यादा वेग इस रास्ते पर गाडी चलाने वाले समान्य व्यक्ति में असुरक्षा पैदा कर जाता है |
खैर , भारत के इन भाविको से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है |

जैसे ये मंदिर , अंहकार और ,घमंड से चूर | वैसे ही यंहा आने वाले श्रद्धालु |

इस मंदिरों की क्या औकात की ये अपने शिष्यों को इंसानियत की तमीज सिखाये | मं दिरो की औकात आने पर मेरे दीमाग मे अनेक घटनाये कौंध गयी |
मुझे अभी भी याद है मेरे समाचार पत्रों में प्रकाशीत लेखो ने इन मंदिरो में बारे में कई सारे सवाल उठाये थे ?? इन लेखो को सबने पढ़ा और सराहा लेकिन कायदे कानून बनाने के लिए कोई आगे नहीं आया | उनमे से एक घटना , जिस पर मैंने काफी अपनी कलम दौड़ाई थी , वह घटना
नब्बे दशक की रही होगी |
प्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय अपनी बम्बई की एक मित्र के साथ पुरी के मंदिर में दर्शन करने गयी | प्रतिभा राय का सफ़ेद रंग और उनकी फाड़-फाड़ अंग्रेजी की वजह से वंहा के पंडो को वे पारसी लगी या शायद फिरंग वहा के पंडो ने राय को मंदिर में प्रवेश देने से मना कर दिया और कहा की ;
'यहाँ हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मो का प्रवेश निषिध है \'
यह नोटिस -बोर्ड भी उन्होंने बाकायदा मंदिर के बाहर टांग दिया |
प्रतिभा राय तिलमिला उठी, स्वभाव से श्रद्धालु प्रतिभा के अहम् को ठेस पहुची |
उन्हें उनके ही मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है|
कैसे संभव है ??
'हमारा मन्दिर है कोई हमें कैसे रोक सकता है ? "

काफी बहस के बाद प्रतिभा राय को मंदिर में प्रवेश तो मिला लेकिन फिर 'यंहा दस रुपये रखे ,वंहा दस रुपये रखे ' , का सिलसिला शुरू हो गया | आगे तो पंडो ने ' यंहा सौ रुपये रखे तो ही दर्शन करने देंगे , की दादागिरी शुरू कर दी | जब राय गुस्सा हुई तो सारे पण्डे इकठ्ठे हो गए और अपने गुण्डापन उतर आये|
अगले दिन उनका लेख सभी महत्वपूर्ण पत्र -पत्रिकाओं मे प्रकाशीत हुआ ____

"क्या हिंदुत्व का रंग काला है ??
"क्या हिन्दुत्व का रंग काला है "??/
"क्या हिंदुत्व का रंग काला है ??"

राय के लेख के बाद मैंने भी अपने लेख में पूछा था , की इस शर्मनाक घटना पर सरकार चुप क्यों है ?/ मंत्री चुप क्यों है ? ?
लेकिन -
आखिर कोई भी क्यों बोलेगा ? वोटो का मामला है | धार्मिक मामला है , मंत्रियो को वोट लेने है या नहीं ?
लगभग उसी दशक में त्रिम्बेक्श्वर में भी मिलाती जुलती घटना घटी |गायिका पार्वती खान को मन्दिर में प्रवेश से रोक दिया गया, कहा गया पार्वती खान मुसलमान है | एसी एक नहीं अनेक घटनाओ का कच्चा चिठ्ठा हमें पता है | हमारे लिए यह कोई नयी नहीं है |
अब मंदिरो की क्या बात करे ??? इन पर बात करने की भला मेरी क्या हैसियत ??
मन्दिर तो स्वयाय्त्त है | मतलब वंहा पूरा गुंडा -राज है | लूट -खसोट है |अपमान , दादागिरी तो जैसे इन पंड़ो का अधिकार है |
मैंने तो कसम खायी है कभी किसी मन्दिर नहीं जाउंगी | अपने काम ,research और लेखनी के सिलसिले में लगभग सारे मंदिरो में जाना हुआ '
DAY LIGHT ROBBERY ' के अलावा वंहा कुछ भी नहीं है | मंदिरो की जो दशा है उससे दिल दहल उठता है | यंहा के त्रिम्बक की भी यही वीकट परिस्थिति है \ मंदिर के बाहर आपको बाकायदा है बोर्ड नज़र आयेगा
"हिन्दू धर्मं के सिवा अन्य धर्मो का प्रवेश निषिध है "
अन्दर जाये आप को मन्दिर रुपी दुकान दिखाई देगी जहाँ सब कुछ बिकता है |
आम पंक्ति ,
VIP पंक्ति ,
पंड़ो को धीरे -धीरे नोट थमाए तो पतली गली से दर्शन का सौभाग्य |यह नज़ारा है यहाँ का |

पता नहीं लोग अपने जगन्नाथ जी को ,शिवजी को इन राक्षसों से मुक्त करा पायेंगे या नहीं ???
लेखनी के सिलसिले मै दर्जनों गिरिजाघरो मे गयी हूँ , गुरूद्वारे मे भी गयी हूँ |वंहा की सफाई ने मुझे बहुत प्रभावित किया है |वंहा के सभ्य और सुसंस्कृत व्यव्हार अपनी और खींच ही लेते है |
आप कभी रामकृष्ण मिशन के आराधना स्थलों पर जाइये आपका मन प्रसन्न हो जायेगा लेकिन सबसे भयावह कुत्सीत ,अश्लील , और आक्रामक वातावरण कलकत्ता के कालीघाट मे, पुरी, मथुरा के द्वारकाधीश ,नासिक के शिवजी के यंहा और वृन्दावन के मंदिरो मे है उतना भयानक और विभ्त्सा दृश्य नरक मे भी नहीं दिखेगा |यमदूतो की तरह लूटते ,धकियाते ,ये पण्डे ऐसे नज़र आते है मानो ये अनपढ़ और क्रूर गुंडों के गिरोह रुमाल से गर्दन
घोटकर सबकुछ लूट लेंगे |पूजा स्थलों पर जैसी शांति ,निर्वेद या औदात्य की अनूभूति होती है वैसे यंहा कुछ भी अहसास नहीं है | पवित्रता की भावनाए यंहा दूर-दूर तक नज़र नहीं आयेंगी |
ये सब एक सिरे से उबकाई ,घृणा ,अनास्था ,गुस्सा और असुरक्षा के अद्वितीय स्तोत्र है |मुझे यंहा के इन सब भक्तो पर कभी दया ,कभी घिन तो कभी विरक्ति महसूस होती है जो इन फूहड़ और फालतू जगहों पर अपनी जेब कटवाते रहते है |
ठीक से याद नहीं किस लेखक ने इन मंदिरो को इस तरह बयां किया था
''' पण्डे ,भिखारी , सांड और रंडियां .शायद ही चीजे इन मंदिरो की पहचान है |ये ही मंदिरो को
सुशोभीत करते है |
मंदिरो की सफाई , गर्भ गृहों की सफाई ,अच्छी रोशनी ,यह कैसे हिन्दू धर्मं के खिलाफ हो सकता है | पर ये पण्डे इतने अहंकारी है की महान दार्शनीक भारतीय चिंतन की ये व्यवहारीक परीनिती इस तरह दीखाते है |करोडो ,अरबो की कमी जो इन मंदिरो मे होती है , क्या उसका कुछ अंष इन मंदिरो मे नहीं लग ??कुछेक गिने चुने मन्दिर है जो ट्रस्ट बनाकर लोगो की सेवा कर रहे है , लेकिन ये उँगलियों पर गिनने मात्र है |
करोडो भक्तो के मानसीक मंदिरो को तोड़ने वाले इन पण्डे रुपी बाबरों के बारे मे न तो भाजपा बोलेगी और न ही शिवसेना ||
आये दिन हमारे देश मे शोर मचाता है गुरुद्वारों मे . मस्जिदों मे हथीयार जमा नहीं किये देने चाहिए |हर धर्मस्थल को आतंकवाद से दूर रखना चहिये | समाज विरोधी तत्वों से दूर रखना चाहिये |साम्प्रदायिकता से दूर रखना चाहिये |मगर गुंडा ट्रेनिंग के हिन्दू मन्दिर नाम के ये जो
महाविद्यालय है , गुंडा -ट्रेनिंग के सेकड़ो साल से चले आ रहे ये हिन्दू मन्दिर रुपी गढ़ है उनकी सफाई का जिम्मा कौन लेगा ???
सफाई का अभियान कौन चलाएगा ?
यज्ञों और हवनो के नाम पर कैसे मंत्री ,राजनेता और आम आदमी तक असली घी से लेकर पैसा सब कुछ फूंक देते है ,लेकिन सफाई के नाम पर इनके पास कानी कौड़ी भी कैसे नहीं होती है |
जो आम जनता , राजनेता , और यंहा तक की न्यायमूर्ति भी जिंदगी भर सही और गलत के अपराध बोध से पीड़ित खुद "भगवान" की शरण मे दंडवत करने के लिए रिरियाते ,तड़पते है वे धर्म के विरुद्ध कुछ करने का साहस कहाँ से लेंगे ???
अपनी उपयोगिता और प्रासंगिता समाप्त हो जाने पर जब कोई धर्म सिर्फ कर्मकांड और रुढियो की अत्म्द्वान्द्ता के मकडजाल मे फंसता है ,, तो किसी बाहरी तत्व के द्वारा उसकी हत्या '' मर्सी- किलिंग ' के श्रेणी मे आती है |इन मंदिरो को कम से कम रोज की हत्या से तो मुक्ति मिलेगी |

काफ्का ने कहा है ----
"KILL ME OR YOU ARE A MURDERER ''
इसलिए

' I WILL LIKE TO KILL THEM '

यहीं उन्हें बचाने का एकमात्र तरीका है |



 

Disha ,Deek and merit .

आजकल किसी भी दोस्त से मिलो ,परिचित से मिलो एक ही चिंता ' किस कॉलेज में दाखिला मिलेगा ?
ज्यादा चिंतित है couselling के लिये |
क्यों की इस समय CET के बाद के दाखिले का समय है |
कल मेरी एक दोस्त के यंहा बारीश के मौसम में चाय का लुत्फ़ उठा रही थी , बड़े ही चिंतित स्थिति में वह बोली
' मधु , यहाँ दिन रात मेहनत करके हमारे बच्छे ९०- ९५ का स्कोर हासिल करते है | CET में १३० तक के अंक लाते है लेकिन इन SC और ST को हमसे बेहतर जगह दाखिला मिलता है , अनपढ़ होने के बावजूद |
तभी रमा का बेटा गुर्राया '
स्साला ,क्यूँ रहूँगा इस देश में ???"
PG करने जाऊंगा तो रह जाऊंगा वही अनपढ़ मुझसे आगे निकले मुझे मान्य नहीं |'
.अब चाय की चुस्कियों के साथ माहोल बहुत ही राष्ट्रीय हो चला था |
रमा बोली ," मधु . तू ही बता बीमार होने पर अपना ऑपरेशन एसे डॉक्टर से कराएगी जो reservation पर आया है ?"जिसमे क्षमता नहीं है डॉक्टर बनने की |
' नहीं ,बिलकुल नहीं करूंगी " मैंने कहा ,पर एसे डॉक्टर से भी नहीं करवाउंगी जो ' capitation fee ' देकर आया है |
क्यों की मेरे लिये डिग्री खरीदकर आया डॉक्टर ज्यादा खतरनाक है ,आरक्षीत के तो नाम से या कानाफूसी से पहचान लूँगी ,पर खरीदे हुए को कैसे पहचानूंगी यह तो छुपा दुश्मन है |
अ' अरे ,मधु एसे लोग सिर्फ १५- २० है '" रमा ने सफाई दी |
तो फिर क्या अरक्षीत ८०- ९० है ???

सच तो यह है हम सभी अरक्षीत के मुकाबले दुसरे डॉक्टर को चुनेंगे |सरकार के मुकाबले प्राइवेट डॉक्टर को चुनेगे ,क्यों की हमें पता है उसे खुली प्रतियोगिता में मेरिट के बल पर खड़े रहना है और भारतीय के बदले अमेरिकेन डॉक्टर को चुनेगे क्यों की हमें पता है की जिस ' effeciency ' और मेरिट की बात हम कर रहे है वह वही है |
'तो यार हम क्या कर सकते है ' रमा का सुर था |
करे वारे कुछ नहीं रमा ,यंहा तो मै उस 'मेरिट' को समझना चाहती हूँ ,जिसकी बात हम आये दिन कर रहे है |
मुझे सचमुच ' मेरिट ' को सोचने पर मजबूर कर दिया | दिशा और दीक के ८० % से भी ज्यादा दोस्त या तो अमेरिका योरोप में है या वहां जाने की तैयारी कर रहे है |मेरे अपने परिवार में हर रिश्तेदार का एक न एक सदस्य अमेरिका में है , और वही बस गया है

|हमारे मेरिट की हर 'excellence ' अमेरिका या योरोप में जाकर ही क्यों ठहरती है ???
वही जाकर क्यों सार्थकता देती है ???
मेरे जितने भी मित्र ,परिचित है , रिश्तेदार है , वो वापस नहीं आना चाहते | briliiant और पढ़े -लिखे है तो अमेरिका और योरोप में चले जाकर बस जाते है |उससे कम पढ़े -लिखे है तो middle -east , इंग्लॅण्ड जाते है |लड़का है तो वही नौकरी कर रहा है , लड़की है तो वहां के लडके से शादी करके बस गयी है |
कब आएंगे पता नहीं ???
उनके माँ -बाप जब मुझे मिलते है तो बताते रहते है ' घर बना लिया है , गाड़ियाँ है , हमें ही बुलाते रहते है , बेहतर सुविधाए है वहां |
मेरी बहन का कहना है " स्वाभाविक है वंहा जाना | वंहा बेहतर सुविधाए है , साफ़ -सफाई है ,| योग्यता की क़द्र है और अपने जैसा हर बात पर घूस का मामला नहीं है |प्रतियोगिता में उनसे टक्कर लोगे तो टिके रहोगे वरना फेंक दिए जाओगे | और अपने बच्चे भी क्या कम प्रतिभाशाली है , prove किया है indians को उन्होंने वंहा |
वह कौन सी मेरिट है जो हमें दिन रात विदेशौंमुख बना रही है | मेरिट तो चली जाती है विदेश और देश में रह जाती है दुसरे तीसरे दर्जे की मेरिट |हीनता महसूस करता दूसरा वर्ग आता है प्रशानिक सेवाओं में ,फिर उसके नीचे का वर्ग जाता है प्राइवेट संस्थानों में ,चौथा छोटे मोटे निजी व्यवसायों में , और बचे दुकानदार और अन्य वर्ग | पर इन सभी वर्गो की इच्छा अंत में अमेरिका जाकर थराने की होती है |
' वीसा मिलाना बहुत स्ट्रिक्ट हो गया है , यह इतनी चिंता का विषय है जीतनी भारत की गरीबी और बेरोजगारी भी नहीं |
आखीर रमा ने कहा ' मेरे बच्चे को reservation की जरूरत नहीं , उसे तो सपने में भी नहीं पता था की जाती क्या होती है ? reservation के पहले कहाँ पता था उसे की उसकी कम्युनिटी क्या है ?? तो सच में हँस कर लोटपोट हो जाने का मन करता है |
सच बात है , जिस तरह से हमारे बच्चे पढ़ रहे है , शिक्षा ले रहे है , डिग्री ले रहे है उसमे जाती तो क्या वर्ग का भी पता नहीं होता है |माँ -बाप अपनी सीमाए और नैतिक मान्यताए तोड़कर बच्चो को हर तरह की सुविधाए दे रहे है ताकि बच्चो की उपलब्धि पर गर्व महसूस कर सके |
छोटी उम्र से ही महंगे कॉन्वेंट और पब्लिक स्कूल से निकलकर सीधे कॉलेज में आ टपकने वाले हमारे बच्चो के पास वक्त ही कहाँ है , अपने आसपास के वर्ग देखने का |उन्हें जाती क्या , वर्ग क्या देश की किसी भी परिस्थिति समझाने का वक्त नहीं है |
अपने से ज्यादा वजन के बैग , और कॉपी किताबो ,होम-वर्क ,tuition के बोझ से दबे ये या तो बंद कमरे में रात दिन रटते रहते है या फिर विदेशी संगीत , कॉमिक्स में डूबे रहते है |
जिन लोगो के साथ वे outing , पिकनिक ,trekk , या रेस्तौरांत में ' JUST TO HAVE FUN ' के लिये जाते है वो भी उन्ही वर्ग के लोग है ,उसी बनावट के है .कहाँ है उनके पास वे अवसर की वे अपनी देश की स्थिथि को समझे . अपनी भाषा ,अपनी संस्कृति को जाने ? किसी भी एसी छेज़ से जुड़े जिसका सम्बन्ध root से हो |भारतीय साहित्य के नाम पर जहाँ दिशा की दिसत आख और कोहनी मटका कर कहे ' ओह्ह्हह्ह , HMT (हिंदी मीडियम टाइप )
या ये country -टाइप है कहकर उस हर चीज को ठुकरा दे जो हमारे देश से जूडी है , या फिर दीक के दोस्त मुंबई के बाहर रहने वालो को ' विल- पीपुल ' (village -people ) के नाम से उपहासित करे और कॉलेज में आये दिन कहे ; मुंबई घूमने आये हो क्या विल-पीपुल ???
हो सकता है आर्ट ले स्टुडेंट थोडा बहुत exhibitions के माध्यम से देश से जुड़े भी लेकिन science और technology के लोगो को तो वो भी नहीं मालूम |हॉस्टल ,classromm , या उसके आसपास , यंहा से सीधे वो air -conditioned ऑफिस में चले जाते है |
reservation के नाम पर ततैया कटे की तरह चिल्लाने वाले जातिवाद या गलत राष्ट्रीय निति के खिलाफ की राष्ट्रीयस भावना से प्रेरित होकर प्रतिरोध नहीं कर रहे है बल्कि अपनी यथास्थिथि बचाए रखने की बौखलाहट है |
डर इन युवाओ और उनके अभिभावकों को मेरिट पर हमले का नहीं है ,डर है वो सारी विज्ञापनी संस्कृति , विज्ञापनी भाषा और चका-चोंध और विज्ञापन का हाथ से निकल जाने का | जहाँ ''क्या " और 'क्यों " के चक्कर में नहीं पड़ा जाता है बल्कि कहा जाता है ' I like it because i like it | या जन्हा सैफ अली खान कहता Lays के विज्ञापन में कहता है '" इतना अच्छा की बांटने को दिल न चाहे , जहा सब बेहतर अपने पास रख लेने का स्वार्थ हो | is as simple as that |
और अपने बच्चो को वह सब देने के लिये बाप पैसे लायेगा भी कहाँ से ?आत्मा बेचकर या देश बेचकर |
इन दोनों के बीच राष्ट्र कहाँ से आता है ? वर्ग कहाँ से आता है ? राष्ट्र की जिम्मेदारी तो इन बच्चो ने कुछ विकल्पहीन ,गंवार राजनेताओ के हाथ उनकी जिम्मेदारी पर छोड़ दी है ?
काश इस मेरिट के साथ शर्त होती की इसका उपयोग सिर्फ देश की स्थिथि सुधारने के लिये होगा ,उसे बहार ले जाने की इज़ाज़त नहीं है तो शायद इसके अन्तिम परीणाम वो नहीं होते जो आज है |


रमा का बेटा , दिशा और दीक के तमाम दोस्त , मेरे रिश्तेदार और तमाम युव  " आखिर ऐसा है तो हम इस देश में रहे ही क्यों ??" की धमकी देकर युवा होने की सुविधाए न भी मांगे तो तो वो जानते है की वो """राष्ट्रीय "" तब तक है जब तक वीसा नहीं आ जाता

Amirs episode , brahminvad , and me

आमिर खान के हर TV  Episode  पर लिखने का मन कर रहा था , शायद वो जो कुछ कह रहा है वही सब मेरी आगामी प्रकाशन में भी है , हालाँकि  विषय को छूने के तरीके बिलकुल ही अलग है | अपने अनिश्चित कामो के तरीको की वजह से आमिर के सब अंक देख नहीं पायीं उसके page  पर भी नहीं |
इस बार जातीयता पर आमिर ने काफी संजीदगी से विषय को छुआ | अभी भी जातीयता  बरकरार है ,यह तो सच है  लेकिन अफ़सोस इस  बात का हुआ की  विषय गाँवो के बारे में ज्यादा बाते  कर रहा था , हमारी निजी जिंदगी का यह अनकहा हिस्सा है इस बात पर प्रकाश नहीं डाला गया | हाँ , यह तो रोजमर्रा का हिस्सा है  मैंने अपने घर में रोज महसूस किया है   आज भी |
सच कहूँ तो मेरे माँ -पिता के घर मुझे यही सिखाया गया की आपके काम  काम करने के तरीके,  आपका श्रम , मेहनत , आपकी सफलता -असफलता , आपकी सोच ,आपका passion  सबसे ज्यादा ,सबसे ऊपर अगर कुछ मायने रखता है तो वह है आपकी "जाती "|

मै  by  default ,ब्रहिमिन परिवार मै पैदा हुई इसलिए इन लोगो के चाल चलन को मैंने बहुत करीब से देखा और इस नतीजे पर पहुंची की जितना ढोंगी प्राणी ब्रह्मिन है उतना तो शायद बगुला भी नहीं है |
 पूरी जिंदगी अपने पिता से भाइयो से और परिवार वालो के बारे में यही वाक्य सुनती ई हूँ ,
"ब्रह्मण पैदाइश अच्छे होते है , सुसंस्कृत होते है "
"ब्रह्मण के खून के जो संस्कार है वही आज देश को बचा रहे है '|
'ब्रह्मण पूजा -पाठ करते है इसलिए संवेदनशील होते है  , वह किसी का बुरा कर ही नहीं सकते '
' ब्रह्मण होकर एसा सोचती हो ???"
मुझे मेरे जीवन में मेरे ब्राह्मण खानदान ने कभी नहीं सिखया की जिंदगी की सफलताए ,असफलताए  सब परिश्रम और लगन का फल होता है  न की ब्रह्मण और भाग्य का साथ होना |मैंने सुना तो " गाँधी को गालिया देते हुए " मैंने सुना ' देश के जब सब मुसलमानों को गोलियों से भून दिया जायेगा तभी देश रहने लायक बनेगा .


ये तो थी सब कानो सुनी बाते पर अनुभव और आँखों से दिखने वाले ब्रह्मिन तो कोई और ही थे |
मैंने अपने भाइयो को पूरी जिंदगी पान बीडी की दूकान पर , पान खाते , बीडी पीते. सिगरेट पीते और लडकियों पर फब्तिया कसते हुए देखा है | उनकी आधी जिंदगी तो पान के दूकान पर ही बीत गयी , फिर देश बनाने का काम उन्होंने किया कब ये मेरी समझ में कभी नहीं आया | उनकी अपनी कंपनिया जिनमे वह नौकरी करते थे ,उसमे भी हेरा फेरी करने से बाज़ नहीं आते थे |

मैंने जब से होश संभल पिता को माँ से लड़ते झागते देखा  , घर का काम काज माँ करती , हम बेटिया काम में हाथ बंटाती, पिता या तो सोते रहते या फिर हुक्म चलते रहते | एक अदद सरकारी नौकरी वह ठीक से नहीं कर पाये , शराब पिने से और सोने से फुर्सत मिले तो सरकारी नौकरी के प्रती अपनी जिम्मेदारिया समझ पाते, तब इन्हें देश की पड़ी नहीं  थी  जब नौकरी में आरक्षण की बात आती तो हम ब्रह्मिन का शोषण कैसे हो रहा है  ये झंडे फहराने वाले मेरे पिता और भाई सबसे पहले होते थे |
शायद बाकि  जगह श्रेष्ठ होने के लिए  कर्मो का होना जरूरी था पर ' हम ब्राह्मण है , और श्रेष्ठ है इसके लिए किसी qualification  की जरूरत नहीं होती थी |
मेरी माँ उपवास कर -कर के तीस किलो वजन की रह गयी , पर यह नहीं समझ पायीं की खुशिया ,सम्रुधि, सब कुछ हमारे प्रयासों से आती है  न की पूजा पाठ से |
मेरे परिवार में , अरविन्द के परिवार में मैने हमेशा दूसरो के बारे में बुरा बोलते हुए , बुरा करते हुए दूसरो की कमजोरियों पर ठहाके लगाते हुए सुना |
पडोसी तो जैसे दुश्मन थे , तीज-त्योहारों में भी एक दुसरे से खुद  को बेहतर सिद्ध करना यही एक खेल जैसे चालू रहते थे | पूजा -पाठ करने वाले  परिवारजन और रिश्तेदारों के बीच  क्या संबध थे और क्या रिश्ते थे ये मै अच्छे  से जानती थी |
मेरे ससुराल मे तो मै हमेशा  किरकिरी बनी रही | ब्रह्मण खानदान के इज्जत की मिटटी पलीद होने के शायद कई कारन होंगे शादी- ब्याह  मे सारीयो के मुकाबले मे मै अन्य परिवार के बहुओ के साथ बिन मुकाबले ही हार जाती थी क्योकि मेरी फटी jeans और कड़ी का कुर्ता मुकाबले मै शरीक ही नहीं होता था . फिर सोने के गहने के की दौड़ मे मै थी ही कहाँ ???
बिना मंगलसूत्र के  बिना बिंदी , बिना गहनों और सबसे बड़ी बात बिना 'लज्जा ' की बहु ब्रह्मण परिवार के इज्जत को सिर्फ डूबा ही सकती थी |
हम इन सब के इतने आदि हो गए है की हम इसे normal  समझने  लगे है |
अभी पिछले महीने हमारे परिचित के यंहा गृह -पूजन था किसी अच्छे caterar के बारे मे मुझसे पुछा गया  बाद मे पता चला की सब कुछ तय होने के बाद  बेहतर खाना बनाने की योग्यता रखने के बाद भी उसे न लेकर दूसरे  के साथ अंतिम  व्यव्हार इसलिए किया क्योकि दूसरा ब्राह्मण था  |
मेरे परिवार मे नजदीकी रिश्तेदार के परिवार ने जब इन्टरनेट से रिश्ते  क़े लिए कोशिश करते समय एक रिश्ते क़े साथ बात चीत की . बाद मे पता चला लड़का ब्रह्मण नहीं है तो रिश्ते को तो मन कर ही दिया गया पर सालो घर मे सुनाई देता रहा ' तू बाल -बाल बच गयी , नहीं तो -----'
जैसे किसी आतंकवादी क़े हाथ लगाने से बच गयी हो ."
मेरा एक दोस्त मुझसे बरसों बाद मिलने आया  मै आंबेडकर की कविताए पढ़ रही थी | अरे  तुम तो उनकी बाजू से हो " उसका कटाक्ष
मेरे सिर्फ इतना कहने पर की. बात किसी क़े बाजू की नहीं है , अच्छी और बुरी बातो को परखने की है ' उस दोस्त ने मुझसे दोबारा मिलने की जरूरत महसूस नहीं की .
मेरे घर क़े पास मे रहने वाली मेरी परिचित अपने बेटे को ' IIT मे सिर्फ इसलिए दाखिला दिलवाना छाहती है की उनके बेटे क़े लड़की वाले गठरी लेकर घूमेंगे और वह एक गोरी लड़की का चयन कर सके |
"एक अदद बेटा  चाहे काला ही क्यों न हो  ,ऊपर से इंजिनियर , और  वह भी  ब्राह्मण कुल का .  साथ मे गोरी पत्नी 
इससे बेहतर qualification किसी भी दुनिया मे नहीं हो सकता |
मै नहीं चाहती की मेरे बच्चो  क़े पास ये योग्यता हो  इसलिए adoption  मे दीक की जाती  का पता  लगाने की कोशिश नहीं की |
जब बच्चो ने  surname की जगह पिता और माँ का नाम लगाने का तय किया तो मन ही मन बहुत खुश हुई
'अब पता करो उनकी कौन सी जात है ----पता ही करते रहा जाओगे |||||||






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