4th जुलाई
अस्पताल के बाहर खड़े सौ लोगो में से एक भी व्यक्ति नहीं चाहता की उसके यहाँ बेटी पैदा हो ।
मेरे साथ भी यही हुआ ।
मै पैदा हुई । वो भी पहली नहीं दूसरी बेटी । कलमुहीं । सबके सपनों पर , आस पर , hopes पर जैसे पानी फिर गया हो ।
घर वालो को कितना दुखी कर गयी थी मै ,इसकी गहराई तब नहीं जानती थी मै ।
मै क्यों घरवालों के आंख की किरकिरी बनी रही हमेशा ये मेरा बाल मन तब समझ नहीं पाता था।
क्यों बात -बात पर मुझे डांट-फटकार और मार पड़ती थी और क्यों दोनों भाइयो को प्यार दुलार ये
मेरा मन तब समझ नहीं पाता था ।
क्यों भाइयो को माखन और मुझे छाछ मिलती थी यह समीकरण मेरे समझ के बाहर था ।
प्यार पाने की हर कोशिश परिवार वालो के मन में घृणा ,विद्वेष भरती चली गयी ?
तब मेरा बाल मन असमंजस में रहता था . ।डांट -फटकार से सराबोर बाल मन कभी छोटा
नटखट बन ही नहीं पाया ।
मेरे हिस्से में सब कुछ ज्यादा होने के बावजूद जब इस असमानता के समीकरण को नहीं सुलझा सकी तो एक विश्वास ने मन में पाँव जमा लिये -यदि मेरे लिये मै नहीं तो मेरे लिये कोई नहीं ।
I belong to myself .
and I will stay for my own
I have nothing more precious than me , me and me "