सगर्व कह रही हू -बलात्कार के बाद भी उसने जिन्दा रहना चाहा |

यमनसिंह शहर में एकहत्तर के मार्च में नवम्बर तक बड़ी मस्जिद के इमाम साहब ने अपने हाथ से आदमियो को जिबह करते हुए कुए से निकाला था ! इसी महीने कुए से अनगिनत लाशो को निकालकर शहरवासी अपने जाने पहचाने चेहरे ढूँढ रहे थे ! मेरे रिश्तेदार ढूँढ रहे है युद्ध में मारे गये और अचानक ग़ुम हो गये लूटकर ,जाते -जाते हमारे घरो में आग लगा गये | मेरे पिता को पकड़कर बूट और बन्दूक से मारा |
दो चाचा को मारकर किनारे फेंक गये | मेरे भाई कि दाहिनी आँख निकाल ली गयी | इसी महीने मुक्ति संग्राम में सम्मिलित तीन मामाओ में से दो मामा लौट आये|
सोलह दिनों बाद कैंप से मेरी इक्कीस वर्षीय खाला लौटी |पडोसी जिन्होंने युद्ध किये उनमे से किसी के हाथ नहीं तो किसी के पैर नहीं ! फिर भी उनके स्वजन लौटने कि ख़ुशी में लोग पागल हो गये थे |
लेकिन मेरी खाला का लौट आना किसी को पसंद नहीं आया था | मानो उसके न लौटने पर ही सबको ख़ुशी होती | इतने दिनों तक मै गर्व से अपने पिता , भाई ,चाचा , मामा के बारे मै बताती रही हू. गर्व के साथ अपनी क्षति के बारे मै बताया है | लेकिन अपनी खाला के बारे मै कभी बता नहीं पायी | मेरी बुज़दिली ही कह लो |

आज सारा निषेध तोड़ते हुए सगर्व कहा रही हू . केम्प कि उस अँधेरी कोठरी मे खाला को बंद कर . दस कामुक नर पशुओ ने लगातार सोलह दिन तक उसका बलत्कार किया |
हमारा समाज ऐसी किसी खाला को लेकर गर्वित नहीं
बड़े बड़े लोगो ने अखबारो मे , सभा -समितियो मे बलात्कृत हुई स्त्रियो के बारे मे बड़ी -बड़ी बाते कही है ,वीरांगना कि उपाधि देते हूए, उदारता के नाम पर एक तरह का मजाक किया है |
लड़ाई से पैदा हुई सभी दरारे , बूट और बन्दूक के कुंडो का नृशंस अत्याचार और मौत के खौफ तक को सभी ने स्वीकार किया , लेकिन ' बलात्कार ' नामक दुर्घटना को किसी ने स्वीकार नहीं किया |
बाहर जब बलात्कार कि शिकार हुई माँ -बहनो के सम्मान को लेकर राजनेतिक नेता चिल्ला रहे थे , उस समय असम्मान के हाथो खुद को बचाने के लिये मेरी खाला ने 'सीलिंग फेन ' से झूलकर फांसी लगा ली |

दोस्त रज़िया कि डायरी का अंश
# gender #  equality #patriarchy # empowerment 

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