नार्थ में पली बढ़ी हू , इसलिए नार्थ से बेहद लगाव है |
दिल्ली , आगरा , ग्वालियर घूमकर हाल ही लौटी हू |
सरोजिनी मार्किट , पुराणी दिल्ली , ताज महल , किला , महाराज बाड़े की भीड़ , कटोरा ताल , पराठे वाली गली के बारे में बता रही होती हू तो एक ही नज़र , एक ही सवाल घूम फिरकर आ जाता है
" साथ में कौन था ?"
मैंने बताया मै अकेली थी |
"क्याआआ? अकेल्लीईइ ? '
यू ही अकेली कोई लड़की दूसरे शहर घूमने जा सकती है ? वो भी महज घूमने ,
बिना किसी काम के ? बिना परिवार के |
यह जानने के बाद की मै अकेली थी किसी को मेरे अनुभव सुनने में कोई जिज्ञासा नहीं थी |जो बात उनके दिलो दिमाग में थी वो यही की " तुम अकेली थी ?'
थी न मेरे साथ मेरे बचपन की यादे |
और कोई नहीं ?
कोई मर्द नहीं ?
नहीं
लोग हैरान होकर मुझे देखते रहे |बगैर मर्द के औरत के होना कोई होना होता है भला ?
मान लो मेरा मन कर रहा हो की गोदावरी में एक डूबकी लगा लू , सुला विनियार्ड के डेक पर घंटो वाइन का लुत्फ़ लू . बेक वाटर पर दिन भर किताब पढ़ते हुए लेटी रहू , रात के शो में दंगल देखने चली जाऊ , तो मुझे क्या करना होगा ? तो अपने पति से समय की भीख मांगनी होगी या फिर किसी और मर्द का जुगाड़ करना होगा | क्यों की बिना मर्द के औरते ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती | होटल में कमरा बुक करो तो पूछते है
'साथ में कौन है ?' साथ में मर्द है तो वे निश्चिन्त हो जाते है |
अकेली औरत को किराये पर घर नहीं . होटल में कमरा नहीं , | सब कुछ जैसे संदिग्द्ध हो जाता है | कही यह गलत औरत तो नहीं |
पुरुष ना हो तो परेशानी , पर यदि पति के आलावा कोई और पुरुष हो तो भी परेशानी | कौन है ये ? इससे तुम्हारा क्या नाता ? यदि साथ में पुरुष नहीं है तो क्यों नहीं है और है तो कौन है ?
और यदि दोनों ही नहीं तो तुम कुछ और् हो
चाहे जो भी हो पर अच्छी औरत तो बिलकुल नहीं |
दिल्ली , आगरा , ग्वालियर घूमकर हाल ही लौटी हू |
सरोजिनी मार्किट , पुराणी दिल्ली , ताज महल , किला , महाराज बाड़े की भीड़ , कटोरा ताल , पराठे वाली गली के बारे में बता रही होती हू तो एक ही नज़र , एक ही सवाल घूम फिरकर आ जाता है
" साथ में कौन था ?"
मैंने बताया मै अकेली थी |
"क्याआआ? अकेल्लीईइ ? '
यू ही अकेली कोई लड़की दूसरे शहर घूमने जा सकती है ? वो भी महज घूमने ,
बिना किसी काम के ? बिना परिवार के |
यह जानने के बाद की मै अकेली थी किसी को मेरे अनुभव सुनने में कोई जिज्ञासा नहीं थी |जो बात उनके दिलो दिमाग में थी वो यही की " तुम अकेली थी ?'
थी न मेरे साथ मेरे बचपन की यादे |
और कोई नहीं ?
कोई मर्द नहीं ?
नहीं
लोग हैरान होकर मुझे देखते रहे |बगैर मर्द के औरत के होना कोई होना होता है भला ?
मान लो मेरा मन कर रहा हो की गोदावरी में एक डूबकी लगा लू , सुला विनियार्ड के डेक पर घंटो वाइन का लुत्फ़ लू . बेक वाटर पर दिन भर किताब पढ़ते हुए लेटी रहू , रात के शो में दंगल देखने चली जाऊ , तो मुझे क्या करना होगा ? तो अपने पति से समय की भीख मांगनी होगी या फिर किसी और मर्द का जुगाड़ करना होगा | क्यों की बिना मर्द के औरते ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती | होटल में कमरा बुक करो तो पूछते है
'साथ में कौन है ?' साथ में मर्द है तो वे निश्चिन्त हो जाते है |
अकेली औरत को किराये पर घर नहीं . होटल में कमरा नहीं , | सब कुछ जैसे संदिग्द्ध हो जाता है | कही यह गलत औरत तो नहीं |
पुरुष ना हो तो परेशानी , पर यदि पति के आलावा कोई और पुरुष हो तो भी परेशानी | कौन है ये ? इससे तुम्हारा क्या नाता ? यदि साथ में पुरुष नहीं है तो क्यों नहीं है और है तो कौन है ?
और यदि दोनों ही नहीं तो तुम कुछ और् हो
चाहे जो भी हो पर अच्छी औरत तो बिलकुल नहीं |
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