disha 'शादी कब कर रही हो ? '



आजकल न चाहते हुए भी एक सवाल अचानक लतरों कि तरह मेरे सामने आ ही जाता है |

"दिशा कि शादी कब कर रही हो ?"
"लडके देख रही हो या नहीं ? "
'कैसी   माँ  हो   कुछ  फिक्र  ही  नहीं  |"
'तुम कहो  तो  उसका  नाम  वधु  -वर  सूचक  में   लिखवा  दे "
'
मै  सिर्फ  मुस्कुरा  देती  हू  |  हमारे  घर  में  दिशा  और  दीक  के  निर्णय  मै  नहीं  लेती  |  कैसे समझाऊ कि अपनी जिंदगी के हर निर्णय दिशा खुद लेती है |   उसके माँ -बाप नहीं |                                                       शादी कब करनी है ?    ' किससे करनी है ? '        'करनी   भी   है या नहीं   '      "सिंगल रहना है या live in  "
ये सारे निर्णय उसके ही रहेंगे |  अभी  भी  और  बाद  में  भी  |
हाल  फिलहाल  तो   वह  यह  तय  कर  रही  है  की  उसका काम कंहा जा रहा है ?   "कैसे जा रहा है ? "   उसके   रहने   के  लिये   घर  है  या  नहीं  --उसका अपना |  पिता    ने   कमाया  हुआ  या  पति  ने  कमाया  हुआ  नहीं  |
मेरी उम्र से दिशा कि आज कि उम्र के बीच समय कि दूरी बहुत ज्यादा है |     लेकिन अब भी शादी का महत्व कम नहीं हुआ है |
दिशा कैसे जीना चाहती है ? क्या करना चाहती है | उसके सपने क्या है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है 'वो शादी कब कर रही है |
फिर महत्व पूर्ण हो जाता है शादी किससे कर रही है ?
ससुराल का status क्या है ?
लड़का क्या करता है ?
कितना सक्सेसफुल है ? अदि अदि |
सबसे   दुःख  की  बात  है  की  इस देश में लड़की कि हैसियत उसकी मेधा से नहीं , उसकी शिक्षा से नहीं  उसके  life  skills    से  नहीं  बल्कि उसकी पति कि योग्यता से आंकी जाती है |
वर्ष पर वर्ष बीत रहे है लेकिन यह अँधेरा कम नहीं हो रहा है ई इस बड़े आधुनिक समाज कि चेतना में जमी हुई धूल, कालिख और मकड़ी के जाल हटाने कि हिम्मत किसी आधुनिकता में नहीं है शायद |
बड़े -बड़े education इंस्टिट्यूट खुल रहे है पर उसमे पढने वाली लडकिया
'शिक्षागत योग्यता '     के बजाय 'स्वामिगत योग्यता "      प्राप्त कर रही है |         अच्छा पति मिलाने तक शिक्षा |
सच  कहे   तो  लडकियो का इसमे क्या दोष ?    दोष तो तरह तरह कि नाइंसाफी वाले संस्कार के है |
बेड़िया पहनी हुई लडकिया घर आंगन , स्कूल कॉलेज और ऑफिस से निकल कर ज्यादा दूर नहीं जा पाती |
शादी के बाद बच्चो के बाद नौकरी , शिक्षा और काम धाम छोड़ने का रिवाज हम आधुनिक शिक्षित परिवारो से आज भी दूर नहीं हुआ है |
लाखो रुपयो कि शिक्षा लेने के बाद शादी के बाद पती और बच्चो की सेवा में जीवन गुज़ारने वाली लडकियो की संख्या    कम होने  के  बजाय    दिन -ब- दिन बढती ही जा रही है |
'
आर्किड'    एक ऐसा लाता पुष्प है जो और पेड़ो का सहारा लेकर जिन्दा रहता है |मेरे चारो तरफ ऐसी कितनी ही लडकिया है जो शादी के पहले पिता का और शादी के बाद पती की पूछ पकड़ कर जिन्दा रहती है|
 नीता जोशी एक दिन अचानक नीता देशमुख बन जाती है |     वह सिर्फ घर बदलती है |     एक आश्रय से दूसरे आश्रय में चली जाती है
हमारी दुनिया से कितना कुछ दूर हो गया है | जंगल खत्म हो गए है , साफ हवा खत्म हो गयी है |  इमान   ख़त्म  हो गया  है  , नहीं  खत्म  हुआ  है  तो  ये  अँधेरा  |
दिशा  ने  अपना  घर  इस  अँधेरे  में नहीं  बल्कि  स्वाभिमान  और  आत्मनिर्भरता  के  उजियारे  में  बनाना तय  किया  है |
लोग  तुम्हे  रोकने  की  कोशिश  करेंगे  दिशा  , जैसी  जा  रही  है  जाओ  |  चलती  जाओ  |
























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