AJOOBA

मुंबई से नासिक , नासिक से मुंबई रोजमर्रा का आना जाना है , दोनों   शहरो में ऑफिस और घर होने को वजह से ऑफिस और  दोनों  के बीच  आना जाना तो लगा रहता ही है |
रोज आते -जाते ,अलग-अलग अनुभवों   में  एक    अनुभव  जिससे मुझे  रोज ही रुब रु  होना  पड़ता है यह अनुभव  मुझे बड़ा विचित्र लगता है  , बात जो मुझे बड़ी ही विचित्र लगाती है , हास्यास्पद  लगती  है , वह है लोगो का व्यवहार .-----खासकर   उस समय जब highway पर गाड़ी का steering -control किसी महिला के पास हो , और खासकर   उस समय  भी  जब उसके मन्नेरिस्म  भी वैसे हो जैसे अभ्यस्त ड्राईवर के होते हो ." |
  यह बात highway पर चल रहे पुरुषो को   शायद  गवारा नहीं  की जो काम  वो करते है वह कोई महिला  करे | मैंने महसूस किया है |\
मै  जब highway   पर होती हू  और  खासकर अकेली तो सड़क पर गाड़ी चलाने  वाले मुझे  बेवजह    साइड नहीं देंगे | बेवजह overtake करेंगे और कुछ कर सके तो window से झांक कर बत्तीसी दिखाकर हंसेगे ,  मानो   कह रहे हो ' वो देखो एक अजूबा जा रहा है |

मुझे ये समझ नहीं आता की जो काम खुद पुरुष करते है , लडके करते है , वो ही काम यदि एक औरत करती है तो अजूबे का पात्र क्यों बन जाती है ??? औरत की पुरुषो सामान सब इच्छाए उसे विचित्रता का  जामा क्यों पहना देती है ???

मेरा भी  मन करता है घूमने  जाने का ,!  हाँ , अकेली मौसम का लुत्फ़ लेने का ! बाज़ार जाने का .! पहाड़ो  पर चढ़ने  का !
|मेरी सचमुच इच्छा है की मै सुबह दोपहर ,शाम अकेली  घूमती  रहूँ |गोदावरी के  किनारे   घंटो  खड़ी   होकर  नदी की लहरों को निहारूं |queens -necklace पर पैर पसारकर  बैठी रहूँफूटपाथ पर ,पार्क मै  , बाज़ार , जहाँ मन करे पूरी शाम बिताऊ|   मन करता है समुद्र में उतरकर    घंटो पानी का  लुत्फ़  लूँ      लेकिन हमेशा  सोचती हूँ   कि   नासिक -मुंबई की द्रिविंग  ही   यदि मुझे अजायबघर का प्राणी बना   देती  है तो ये सब इच्छाए मै पूरी करने लगूं  तो  क्या होगा ? लोग मुझे  धिक्कारेंगे  , पागल कहेंगे , चरित्रहीन कहकर मुझ पर फब्तियां कसेंगे  |मुझे बार -बार अपमानित होना पड़ेगायही सब करते हुए   शायद  किसी पुरुष को अपमान का शिकार नहीं होना पड़ेगा , उस पर फब्तियां नहीं   कसी    जायेंगी   |
हादसे सिर्फ औरत के साथ ही होते है , पुरुषो के साथ नहीं |
मेरी गलती तो सिर्फ इतनी है की मै बगैर किसी पुरुष के घूमती  हूँ | सभी मुझसे एक ही बात कहते है ' तुम अकेली क्यों घूमती हो ?? सही भी तो है |
पुरुष स्वभाव की विचित्रताए उन्हें शोभा देती है , पर भला एक स्त्री क्यों अकेली टहलेगी ? पेड़ की छावं मे अकेली क्यों विश्राम करेगी ? सीढ़ी पर अकेले बैठकर क्यों भला किसी का इंतजार करेगी ? भूख लगने पर किसी रेस्तरो मे अकेली क्यों खायेगी?
क्यों करेगी भला स्त्री  एसा सब कुछ ?  क्या उसके जिन्दा रहने के लिए  एक अदद रोशनदान और हवा मे उपलब्ध oxygen  उसे  जिन्दा   रखने के लिये  काफी नहीं है ????
स्त्री के लिये एसी तमाम इच्छाए पालना उचित नहीं है   क्यों  कि  वह अपने लिये तय किये रास्तो पर चलती है ,डरती है ,शर्माती है | जो भी महिलाये एसा करती है ,वह सब भली महिलाये है , अच्छी है ,सुसंस्कृत है |  औरत पूरी जिंदगी  अपने तय किये रास्तो पर  बिना सवाल  किये चलती है  क्यों कि औरत पर 'चरित्र ; नाम का इतना बड़ा भय पैदा कर रखा है की औरत इस शब्द से सबसे ज्यादा अपमानित महसूस करती है   औरत  के बुद्धि का यदि कोई मोल नहीं है तो उसे बुरा नहीं लगेगा पर यदि उसके चरित्र पर प्रहार किया तो वह तिलमिला जायेगी | | अपमानित महसूस करेगी   |कोई उसे चरीत्रहीन कहे यह उसे हरगीज गवारा नहीं | इस शब्द से बचने के लिये वह कितनी भी कुरबानिया देने के लिये तैयार है | उसके चरित्र पर कोई प्रहार ना करे इसलिए वह बहुत बचकर चलती है टी तयकिये  रास्तो पर चलकर  , पुरुषो के लिए |साज-शृंगार करती है |वैश्याए शृंगार करती है असामाजिक ग्राहक की आशा मे , लेकिन भद्र महिलाये शृंगार करती है सामाजिक ग्राहक के लिये |उद्देश्य दोनों का ग्राहक पाना ही है .जितना बड़ा ग्राहक होगा , सुविधाए भी तो उतनी अच्छी मिलेंगी खाना -पीना ' गाड़ी -बंगला , गहने ,क्लब , पार्टी | पर इन सब सुविधाओ के बदले वह पहाड़ो का आनंद छोड़ देती है , मन मर्जी से जीना भूल जाती है | अपने सभी अरमानो , अपनी इच्छाओ ,अकांक्षाओ , चाहतो और सपनों को जलाकर वह पुरुष के घर को आलोकित करती है |
                              



                              " स्त्री के इसअर्थहीन जीवन केलिये शोकसंताप सेभरी हुई मैलज्जित हूँ "



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