''क्या हिंदुत्व का रंग काला है ???"

त्रिम्बक रोड से गुजरकर , मुझे अपने writing unit जाना पड़ता है | श्रावण का महिना और त्रिम्बेक्श्वर का रास्ता , कल्पना करना भी मुश्किल है की देश भर की कितनी गाड़ियाँ दिन भर इस रास्ते पर चलती है |
देश के कोने कोने से आये श्रद्धालु .,इन रास्तो पर वहां चलाते समय इतने हिंसक कैसे हो जाते है समझ नहीं आता आता | उनके वाहन का आवेग संभाले नहीं संभालता | इन टूरिस्ट का जरूरत से ज्यादा वेग इस रास्ते पर गाडी चलाने वाले समान्य व्यक्ति में असुरक्षा पैदा कर जाता है |
खैर , भारत के इन भाविको से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है |

जैसे ये मंदिर , अंहकार और ,घमंड से चूर | वैसे ही यंहा आने वाले श्रद्धालु |

इस मंदिरों की क्या औकात की ये अपने शिष्यों को इंसानियत की तमीज सिखाये | मं दिरो की औकात आने पर मेरे दीमाग मे अनेक घटनाये कौंध गयी |
मुझे अभी भी याद है मेरे समाचार पत्रों में प्रकाशीत लेखो ने इन मंदिरो में बारे में कई सारे सवाल उठाये थे ?? इन लेखो को सबने पढ़ा और सराहा लेकिन कायदे कानून बनाने के लिए कोई आगे नहीं आया | उनमे से एक घटना , जिस पर मैंने काफी अपनी कलम दौड़ाई थी , वह घटना
नब्बे दशक की रही होगी |
प्रसिद्ध लेखिका प्रतिभा राय अपनी बम्बई की एक मित्र के साथ पुरी के मंदिर में दर्शन करने गयी | प्रतिभा राय का सफ़ेद रंग और उनकी फाड़-फाड़ अंग्रेजी की वजह से वंहा के पंडो को वे पारसी लगी या शायद फिरंग वहा के पंडो ने राय को मंदिर में प्रवेश देने से मना कर दिया और कहा की ;
'यहाँ हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मो का प्रवेश निषिध है \'
यह नोटिस -बोर्ड भी उन्होंने बाकायदा मंदिर के बाहर टांग दिया |
प्रतिभा राय तिलमिला उठी, स्वभाव से श्रद्धालु प्रतिभा के अहम् को ठेस पहुची |
उन्हें उनके ही मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है|
कैसे संभव है ??
'हमारा मन्दिर है कोई हमें कैसे रोक सकता है ? "

काफी बहस के बाद प्रतिभा राय को मंदिर में प्रवेश तो मिला लेकिन फिर 'यंहा दस रुपये रखे ,वंहा दस रुपये रखे ' , का सिलसिला शुरू हो गया | आगे तो पंडो ने ' यंहा सौ रुपये रखे तो ही दर्शन करने देंगे , की दादागिरी शुरू कर दी | जब राय गुस्सा हुई तो सारे पण्डे इकठ्ठे हो गए और अपने गुण्डापन उतर आये|
अगले दिन उनका लेख सभी महत्वपूर्ण पत्र -पत्रिकाओं मे प्रकाशीत हुआ ____

"क्या हिंदुत्व का रंग काला है ??
"क्या हिन्दुत्व का रंग काला है "??/
"क्या हिंदुत्व का रंग काला है ??"

राय के लेख के बाद मैंने भी अपने लेख में पूछा था , की इस शर्मनाक घटना पर सरकार चुप क्यों है ?/ मंत्री चुप क्यों है ? ?
लेकिन -
आखिर कोई भी क्यों बोलेगा ? वोटो का मामला है | धार्मिक मामला है , मंत्रियो को वोट लेने है या नहीं ?
लगभग उसी दशक में त्रिम्बेक्श्वर में भी मिलाती जुलती घटना घटी |गायिका पार्वती खान को मन्दिर में प्रवेश से रोक दिया गया, कहा गया पार्वती खान मुसलमान है | एसी एक नहीं अनेक घटनाओ का कच्चा चिठ्ठा हमें पता है | हमारे लिए यह कोई नयी नहीं है |
अब मंदिरो की क्या बात करे ??? इन पर बात करने की भला मेरी क्या हैसियत ??
मन्दिर तो स्वयाय्त्त है | मतलब वंहा पूरा गुंडा -राज है | लूट -खसोट है |अपमान , दादागिरी तो जैसे इन पंड़ो का अधिकार है |
मैंने तो कसम खायी है कभी किसी मन्दिर नहीं जाउंगी | अपने काम ,research और लेखनी के सिलसिले में लगभग सारे मंदिरो में जाना हुआ '
DAY LIGHT ROBBERY ' के अलावा वंहा कुछ भी नहीं है | मंदिरो की जो दशा है उससे दिल दहल उठता है | यंहा के त्रिम्बक की भी यही वीकट परिस्थिति है \ मंदिर के बाहर आपको बाकायदा है बोर्ड नज़र आयेगा
"हिन्दू धर्मं के सिवा अन्य धर्मो का प्रवेश निषिध है "
अन्दर जाये आप को मन्दिर रुपी दुकान दिखाई देगी जहाँ सब कुछ बिकता है |
आम पंक्ति ,
VIP पंक्ति ,
पंड़ो को धीरे -धीरे नोट थमाए तो पतली गली से दर्शन का सौभाग्य |यह नज़ारा है यहाँ का |

पता नहीं लोग अपने जगन्नाथ जी को ,शिवजी को इन राक्षसों से मुक्त करा पायेंगे या नहीं ???
लेखनी के सिलसिले मै दर्जनों गिरिजाघरो मे गयी हूँ , गुरूद्वारे मे भी गयी हूँ |वंहा की सफाई ने मुझे बहुत प्रभावित किया है |वंहा के सभ्य और सुसंस्कृत व्यव्हार अपनी और खींच ही लेते है |
आप कभी रामकृष्ण मिशन के आराधना स्थलों पर जाइये आपका मन प्रसन्न हो जायेगा लेकिन सबसे भयावह कुत्सीत ,अश्लील , और आक्रामक वातावरण कलकत्ता के कालीघाट मे, पुरी, मथुरा के द्वारकाधीश ,नासिक के शिवजी के यंहा और वृन्दावन के मंदिरो मे है उतना भयानक और विभ्त्सा दृश्य नरक मे भी नहीं दिखेगा |यमदूतो की तरह लूटते ,धकियाते ,ये पण्डे ऐसे नज़र आते है मानो ये अनपढ़ और क्रूर गुंडों के गिरोह रुमाल से गर्दन
घोटकर सबकुछ लूट लेंगे |पूजा स्थलों पर जैसी शांति ,निर्वेद या औदात्य की अनूभूति होती है वैसे यंहा कुछ भी अहसास नहीं है | पवित्रता की भावनाए यंहा दूर-दूर तक नज़र नहीं आयेंगी |
ये सब एक सिरे से उबकाई ,घृणा ,अनास्था ,गुस्सा और असुरक्षा के अद्वितीय स्तोत्र है |मुझे यंहा के इन सब भक्तो पर कभी दया ,कभी घिन तो कभी विरक्ति महसूस होती है जो इन फूहड़ और फालतू जगहों पर अपनी जेब कटवाते रहते है |
ठीक से याद नहीं किस लेखक ने इन मंदिरो को इस तरह बयां किया था
''' पण्डे ,भिखारी , सांड और रंडियां .शायद ही चीजे इन मंदिरो की पहचान है |ये ही मंदिरो को
सुशोभीत करते है |
मंदिरो की सफाई , गर्भ गृहों की सफाई ,अच्छी रोशनी ,यह कैसे हिन्दू धर्मं के खिलाफ हो सकता है | पर ये पण्डे इतने अहंकारी है की महान दार्शनीक भारतीय चिंतन की ये व्यवहारीक परीनिती इस तरह दीखाते है |करोडो ,अरबो की कमी जो इन मंदिरो मे होती है , क्या उसका कुछ अंष इन मंदिरो मे नहीं लग ??कुछेक गिने चुने मन्दिर है जो ट्रस्ट बनाकर लोगो की सेवा कर रहे है , लेकिन ये उँगलियों पर गिनने मात्र है |
करोडो भक्तो के मानसीक मंदिरो को तोड़ने वाले इन पण्डे रुपी बाबरों के बारे मे न तो भाजपा बोलेगी और न ही शिवसेना ||
आये दिन हमारे देश मे शोर मचाता है गुरुद्वारों मे . मस्जिदों मे हथीयार जमा नहीं किये देने चाहिए |हर धर्मस्थल को आतंकवाद से दूर रखना चहिये | समाज विरोधी तत्वों से दूर रखना चाहिये |साम्प्रदायिकता से दूर रखना चाहिये |मगर गुंडा ट्रेनिंग के हिन्दू मन्दिर नाम के ये जो
महाविद्यालय है , गुंडा -ट्रेनिंग के सेकड़ो साल से चले आ रहे ये हिन्दू मन्दिर रुपी गढ़ है उनकी सफाई का जिम्मा कौन लेगा ???
सफाई का अभियान कौन चलाएगा ?
यज्ञों और हवनो के नाम पर कैसे मंत्री ,राजनेता और आम आदमी तक असली घी से लेकर पैसा सब कुछ फूंक देते है ,लेकिन सफाई के नाम पर इनके पास कानी कौड़ी भी कैसे नहीं होती है |
जो आम जनता , राजनेता , और यंहा तक की न्यायमूर्ति भी जिंदगी भर सही और गलत के अपराध बोध से पीड़ित खुद "भगवान" की शरण मे दंडवत करने के लिए रिरियाते ,तड़पते है वे धर्म के विरुद्ध कुछ करने का साहस कहाँ से लेंगे ???
अपनी उपयोगिता और प्रासंगिता समाप्त हो जाने पर जब कोई धर्म सिर्फ कर्मकांड और रुढियो की अत्म्द्वान्द्ता के मकडजाल मे फंसता है ,, तो किसी बाहरी तत्व के द्वारा उसकी हत्या '' मर्सी- किलिंग ' के श्रेणी मे आती है |इन मंदिरो को कम से कम रोज की हत्या से तो मुक्ति मिलेगी |

काफ्का ने कहा है ----
"KILL ME OR YOU ARE A MURDERER ''
इसलिए

' I WILL LIKE TO KILL THEM '

यहीं उन्हें बचाने का एकमात्र तरीका है |



 

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