Amirs episode , brahminvad , and me

आमिर खान के हर TV  Episode  पर लिखने का मन कर रहा था , शायद वो जो कुछ कह रहा है वही सब मेरी आगामी प्रकाशन में भी है , हालाँकि  विषय को छूने के तरीके बिलकुल ही अलग है | अपने अनिश्चित कामो के तरीको की वजह से आमिर के सब अंक देख नहीं पायीं उसके page  पर भी नहीं |
इस बार जातीयता पर आमिर ने काफी संजीदगी से विषय को छुआ | अभी भी जातीयता  बरकरार है ,यह तो सच है  लेकिन अफ़सोस इस  बात का हुआ की  विषय गाँवो के बारे में ज्यादा बाते  कर रहा था , हमारी निजी जिंदगी का यह अनकहा हिस्सा है इस बात पर प्रकाश नहीं डाला गया | हाँ , यह तो रोजमर्रा का हिस्सा है  मैंने अपने घर में रोज महसूस किया है   आज भी |
सच कहूँ तो मेरे माँ -पिता के घर मुझे यही सिखाया गया की आपके काम  काम करने के तरीके,  आपका श्रम , मेहनत , आपकी सफलता -असफलता , आपकी सोच ,आपका passion  सबसे ज्यादा ,सबसे ऊपर अगर कुछ मायने रखता है तो वह है आपकी "जाती "|

मै  by  default ,ब्रहिमिन परिवार मै पैदा हुई इसलिए इन लोगो के चाल चलन को मैंने बहुत करीब से देखा और इस नतीजे पर पहुंची की जितना ढोंगी प्राणी ब्रह्मिन है उतना तो शायद बगुला भी नहीं है |
 पूरी जिंदगी अपने पिता से भाइयो से और परिवार वालो के बारे में यही वाक्य सुनती ई हूँ ,
"ब्रह्मण पैदाइश अच्छे होते है , सुसंस्कृत होते है "
"ब्रह्मण के खून के जो संस्कार है वही आज देश को बचा रहे है '|
'ब्रह्मण पूजा -पाठ करते है इसलिए संवेदनशील होते है  , वह किसी का बुरा कर ही नहीं सकते '
' ब्रह्मण होकर एसा सोचती हो ???"
मुझे मेरे जीवन में मेरे ब्राह्मण खानदान ने कभी नहीं सिखया की जिंदगी की सफलताए ,असफलताए  सब परिश्रम और लगन का फल होता है  न की ब्रह्मण और भाग्य का साथ होना |मैंने सुना तो " गाँधी को गालिया देते हुए " मैंने सुना ' देश के जब सब मुसलमानों को गोलियों से भून दिया जायेगा तभी देश रहने लायक बनेगा .


ये तो थी सब कानो सुनी बाते पर अनुभव और आँखों से दिखने वाले ब्रह्मिन तो कोई और ही थे |
मैंने अपने भाइयो को पूरी जिंदगी पान बीडी की दूकान पर , पान खाते , बीडी पीते. सिगरेट पीते और लडकियों पर फब्तिया कसते हुए देखा है | उनकी आधी जिंदगी तो पान के दूकान पर ही बीत गयी , फिर देश बनाने का काम उन्होंने किया कब ये मेरी समझ में कभी नहीं आया | उनकी अपनी कंपनिया जिनमे वह नौकरी करते थे ,उसमे भी हेरा फेरी करने से बाज़ नहीं आते थे |

मैंने जब से होश संभल पिता को माँ से लड़ते झागते देखा  , घर का काम काज माँ करती , हम बेटिया काम में हाथ बंटाती, पिता या तो सोते रहते या फिर हुक्म चलते रहते | एक अदद सरकारी नौकरी वह ठीक से नहीं कर पाये , शराब पिने से और सोने से फुर्सत मिले तो सरकारी नौकरी के प्रती अपनी जिम्मेदारिया समझ पाते, तब इन्हें देश की पड़ी नहीं  थी  जब नौकरी में आरक्षण की बात आती तो हम ब्रह्मिन का शोषण कैसे हो रहा है  ये झंडे फहराने वाले मेरे पिता और भाई सबसे पहले होते थे |
शायद बाकि  जगह श्रेष्ठ होने के लिए  कर्मो का होना जरूरी था पर ' हम ब्राह्मण है , और श्रेष्ठ है इसके लिए किसी qualification  की जरूरत नहीं होती थी |
मेरी माँ उपवास कर -कर के तीस किलो वजन की रह गयी , पर यह नहीं समझ पायीं की खुशिया ,सम्रुधि, सब कुछ हमारे प्रयासों से आती है  न की पूजा पाठ से |
मेरे परिवार में , अरविन्द के परिवार में मैने हमेशा दूसरो के बारे में बुरा बोलते हुए , बुरा करते हुए दूसरो की कमजोरियों पर ठहाके लगाते हुए सुना |
पडोसी तो जैसे दुश्मन थे , तीज-त्योहारों में भी एक दुसरे से खुद  को बेहतर सिद्ध करना यही एक खेल जैसे चालू रहते थे | पूजा -पाठ करने वाले  परिवारजन और रिश्तेदारों के बीच  क्या संबध थे और क्या रिश्ते थे ये मै अच्छे  से जानती थी |
मेरे ससुराल मे तो मै हमेशा  किरकिरी बनी रही | ब्रह्मण खानदान के इज्जत की मिटटी पलीद होने के शायद कई कारन होंगे शादी- ब्याह  मे सारीयो के मुकाबले मे मै अन्य परिवार के बहुओ के साथ बिन मुकाबले ही हार जाती थी क्योकि मेरी फटी jeans और कड़ी का कुर्ता मुकाबले मै शरीक ही नहीं होता था . फिर सोने के गहने के की दौड़ मे मै थी ही कहाँ ???
बिना मंगलसूत्र के  बिना बिंदी , बिना गहनों और सबसे बड़ी बात बिना 'लज्जा ' की बहु ब्रह्मण परिवार के इज्जत को सिर्फ डूबा ही सकती थी |
हम इन सब के इतने आदि हो गए है की हम इसे normal  समझने  लगे है |
अभी पिछले महीने हमारे परिचित के यंहा गृह -पूजन था किसी अच्छे caterar के बारे मे मुझसे पुछा गया  बाद मे पता चला की सब कुछ तय होने के बाद  बेहतर खाना बनाने की योग्यता रखने के बाद भी उसे न लेकर दूसरे  के साथ अंतिम  व्यव्हार इसलिए किया क्योकि दूसरा ब्राह्मण था  |
मेरे परिवार मे नजदीकी रिश्तेदार के परिवार ने जब इन्टरनेट से रिश्ते  क़े लिए कोशिश करते समय एक रिश्ते क़े साथ बात चीत की . बाद मे पता चला लड़का ब्रह्मण नहीं है तो रिश्ते को तो मन कर ही दिया गया पर सालो घर मे सुनाई देता रहा ' तू बाल -बाल बच गयी , नहीं तो -----'
जैसे किसी आतंकवादी क़े हाथ लगाने से बच गयी हो ."
मेरा एक दोस्त मुझसे बरसों बाद मिलने आया  मै आंबेडकर की कविताए पढ़ रही थी | अरे  तुम तो उनकी बाजू से हो " उसका कटाक्ष
मेरे सिर्फ इतना कहने पर की. बात किसी क़े बाजू की नहीं है , अच्छी और बुरी बातो को परखने की है ' उस दोस्त ने मुझसे दोबारा मिलने की जरूरत महसूस नहीं की .
मेरे घर क़े पास मे रहने वाली मेरी परिचित अपने बेटे को ' IIT मे सिर्फ इसलिए दाखिला दिलवाना छाहती है की उनके बेटे क़े लड़की वाले गठरी लेकर घूमेंगे और वह एक गोरी लड़की का चयन कर सके |
"एक अदद बेटा  चाहे काला ही क्यों न हो  ,ऊपर से इंजिनियर , और  वह भी  ब्राह्मण कुल का .  साथ मे गोरी पत्नी 
इससे बेहतर qualification किसी भी दुनिया मे नहीं हो सकता |
मै नहीं चाहती की मेरे बच्चो  क़े पास ये योग्यता हो  इसलिए adoption  मे दीक की जाती  का पता  लगाने की कोशिश नहीं की |
जब बच्चो ने  surname की जगह पिता और माँ का नाम लगाने का तय किया तो मन ही मन बहुत खुश हुई
'अब पता करो उनकी कौन सी जात है ----पता ही करते रहा जाओगे |||||||






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