मेरे भाई, पिता , तमाम नाते रिश्तेदार , कोई भी मेरी बात से सहमत नहीं है | वो स्त्री पुरुष बराबरी में यकीन नहीं करते | वे नहीं मानते की स्त्री दुय्यम दर्जे पर है | वे मानते है की स्त्री और पुरुष की कोई बराबरी है ही नहीं | स्त्री तो पुरुष से कितने ही बातो में श्रेष्ठ है एसा उनका मानना है | स्त्री तो अपने में सब कुछ समाये हुए है | वह पुरुष की सिर्फ पत्नी नहीं है वह स्त्री के रूप में उसकी माँ भी है , बहन भी है | वह अपनी योग्यता से सारे रिश्ते बखूबी निबाह ले जाती है | और पुरुष की जिंदगी में घोल देती है मदिरा | उड़ेल देती है प्यार ही प्यार |
सच है | कितनी गहरी बात कह गये न ये लोग | स्त्री के इतने सारे रूप | पुरुष भी तो उसकी इस योग्यता पर , इस अदा पर फ़िदा है | वह भी तो स्त्री के शरीर में इतने सारे रिश्ते देखना चाहता है | उस पर मर मिटता है | अपनी पत्नी को माता के रूप में , प्रिय के रूप में , बहन के रूप में देखने पर उसे बड़ा सुकून मिलता है | एक अलग ही प्रकार के आनंद की अनुभूति होती है एक ही शरीर में तीनो को पा लेने पर वे ' पत्नी ' को वे देवी का दर्जा दे देते है| वे तो धन्य हो जाते है जब वे घर लौटते है स्त्री स्वादिष्ट खाना बनाकर उसका इंतजार करती है , फिर माँ की तरह बैठकर उसे स्वयं खिलाती है , परोसती है , यकीनना . उसे जरा भी माँ की कमी महसूस नहीं होने देती |

और तो और बड़ी बहन की तरह उसके कपडे संवारती है | दुरुस्त करती है | उसे जरा भी , रत्ती भर भी बहन की कमी महसूस नहीं होने देती |
रात को बिस्तर पर थकी हारी पत्नी नहीं बल्कि प्रेमिका बन अपने शरीर को , अपनी बांहों को फैला देती है | और पति को सुखी कर जाती है |

सही है स्त्री के इन विभिन्न रूप में ही पुरुष को मजा आता है | जिंदगी में वो स्त्री से नाटक करवाते है , अभिनय करवाते है और फिर मजा लूटते है | तालिया पीटते है | स्त्री जितने अलग अलग रूपों में उसकी जिंदगी में आती है उतनी ही वो उसे रसभरी लगती है | स्त्री जीतनी अपनी यह कला दिखाएगी पुरुष उतना ही उसके तन मन का आनंद लेगा | उसके कला में रस लेगा | आस्वाद लेगा |
बेशर्म पुरुष जिस स्त्री पर वो वायलेंस करता है , , हिंसा करता है , नोचता है , कुचलता है . खनन करता है , उसे ही उसने नाम दे डाला ' जननी |' पृथ्वी भी तो जननी है | स्त्री की तरह धारण करती है | उस पर कितने भी अत्याचार करो चूर्ण -विचूर्ण होने से पीछे नहीं हटती |

हर वो चीज जो अत्याचार पर भी टूटती नहीं , वार नहीं करती पुरुष की नज़र में जननी है | स्त्री जननी है , इसलिए तो उसे रौंदा जाता है | लूटा खसोटा जाता है | उसके शरीर को अपना समझा जाता है | उसे एक एसा खिलौना बनाया जाता है एक एसा खिलौना की जिस खिलोने की चाबी घुमाते ही वह पुरुष के इर्द गिर्द ढोल बजाएगी .| नाचेगी गाएगी ,उसे प्रफुल्लित करेगी |कुल मिलाकर वह पुरुष को आनंद भी प्रदान करेगी और आश्वस्त भी रखेगी |
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बंद करो मदारी के ताल पर नाचना , डोर अपने हाथ में लो | उठो मेरे दोस्तों उठो| |
भाड में जाये ये नाटक , भाड में जाये ये उपमाये , उठो यारा दूसरो के डमरू पर नाचना छोड़ो | बंद करो ये नकली दुग्दुगी |
, अपने जिंदगी की कमान अपने हाथ में लो |
उठो मेरी दोस्तो उठो |