मेरे कुछ पुरुष मित्र अक्सrर पेपर में आये लेखो की बtहुत तारीफ करते है | सोशल मीडिया पर मै कैसे पितृसत्ता की धज्जिया उड़ाती हू | ये बात वो मुझसे फ़ोन पर कहते है
पर फेस बुक पर सामने आने से कतराते है |
कुछ तो friend list में रहने से भी कतराते है |सामने कुछ नहीं लिखते | मै gender के लिए कितनी भी लड़ाई कर लू . कितना भी लिख लू . कितना भी छप जाऊ . मै एक औरत हू , भला औरतो की प्रशंसा खुले आम की जा सकती है ? और वो भी एक so called over स्मार्ट औरत की | lol... छी छी छी | हम राधे माँ की तारीफ कर सकते है | अपना सब कुछ न्योछावर कर अपने बेटे और पति को बॉर्डर पर भेजने वाली माँ और पत्नी की तारीफ कर सकते है | पर अपने हक़ के लिए खड़े होने वाली किसी औरत की दोस्ती हम खुल्लमखुल्ला नहीं बता सकते | आखिर जमाना क्या कहेगा ?इससे उनकी इज्ज़त नहीं जायेगी?
हमारे शहर के . हमारे चारो तरफ उगे 'चरित्र बुद्धजीवी ' गोपनीय ढंग से काले कांच की गाडियों में घूमना पसंद करते है | गोपनीय ढंग से उनके साथ शहर के किसी बड़े रेस्त्रा में सबसे किनारे वाली टेबल पर ' Chinese खाते हुए गप्पे लडाना पसंद करते है क्यों की उनके अन्दर तो घिगौना संस्कार नहीं है , उनका जीवन तरंगहीन तालाब नहीं , उत्ताल समुद्र है | ये जीवन के अनेक आनंद को अपने में समाहित करने में व्यस्त है | हाँ .वे औरतो के कान में फुसफुसाते रहते है ' मै तुमसे प्यार करता हू |' लेकिन सबके सामने कहते है .' चुपचाप रहो ' क्यों की 'जात' में आने याने प्रतिष्ठा हो जाने के बाद , प्रतिष्ठीत हो जाने के बाद लडकियों को लेकर बातचीत करना शोभा नहीं देता | शोभा देता है फेस बुक पर 'जय शिवाजी ' के नारे लगा कर पर्सनल विंडो में you are great की रैट लगाये जाना | शोभा देता है , किसी कोने की टेबल पर महिला मित्र के साथ बियर पीते हुए ' स्त्री स्वत्र्न्तता की बाते करना और घर जा कर माँ के पैर छूते हुए बीवी को खाना लगाने को कहना \