नींद नहीं आ रही और याद आ रही है माँ
माँ जिसे नहीं देखा कभीहंसते हुए खुलकर ,
नहीं देखा कभी गाते हुए ‘नहीं देखा कभी नाचते हुए
खिलखिलाती तो कैसी दिखाती माँ ?
इत्र से भीगी कैसी दिखती माँ ?
अखबार पढ़ती कैसी दिखती माँ ?
पापा के हाथ का गर्म खाना खाती कैसी दिखती माँ
जाने कितने रहस्य का पुलिंदा थी माँ |
माँ की उपवास की ऊष्मा बैचेनी से लथपथ ,
बरतनों के ढेर के बिच उसकी ख़ामोशी के बीच
सबकी जिम्मेदारियों को ओढ़कर छुपे कंधो के बीच
मै
कभी सो नहीं पायी|
मेरी नींद भी चली गयी है माँ के आसपास
कभी न आने के लिये
पर सुनो माँ , मै तुम्हे कम ही याद करती हू,
जी लेती हू दिल खोल तुम्हारी याद में
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# Mothers day . # Mother # Gender # Mothers life
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