मेरा प्यार -सोलह आना |
'प्यार ' कितना ख़ूबसूरत शब्द है यह मै जानती हू| आज भी | यह सच भी है की प्यार का एहसास मात्र खूबसूरत होता है |
स्कूली
दिनों में जिस लडके से प्यार किया वो ये 'मत पहनो ,' उससे बात मत करो' .
'इसकी तरफ मत देखो ,' 'कल तुम नै सड़क पर क्या कर रही थी? ' , इससे बाहर नहीं निकल सका |
|बाद में मेरा उससे कभी संपर्क नहीं हो पाया | मन भी नहीं किया उससे मिलने का | डरे हुए लोगो का जिंदगी से जितने जल्दी हो सके निकल जाना ही ठीक है |
प्यार कभी भी स्थिर रहने कि चीज नहीं है | किसी से प्यार करो तो आजीवन करते रहो भले ही चोट खाते रहो ,किसी कि तरफ देखो भी नहीं | ये सब मै नहीं मानती |
मै इतनी सन्यासी बनने को कभी राजी नहीं थी | मैंने जिससे प्यार किया पूरी शिद्दत से किया , पूरी गहराई से किया | बिना किसी मिलावट के | लेकिन जब मन उचटा तो हमेशा के लिए उचट गया | , यह बात और है कि उचटने के लिए बहुत सोलिड वजह होती थी |
मै जिस परिवार में पली बढ़ी वंहा तो प्यार करना बहुत ही गलत
काम था | गुनाह था | एसा गुनाह जिसकी सजा सिर्फ फांसी हो सकती है | मेरे भाइयो का चोर होना , लुच्चा होना , कामचोर होना ,
भ्रष्टाचारी होना सभी कुछ इतना गलत नहीं था जितना मेरा किसी से 'प्यार
करना ' |वो भी मुझे मेरे गुनाहो कि सजा देने को हमेशा तत्पर थे |
बाद में मुझे
जिससे प्यार हुआ , मेरा पति उसके साथ कि मेरी प्रेम धारणा पुस्तको
पर आधारित थी | मेरा मन में प्यार करने की कल्पना वैसी ही थी जैसे देवदास ने पार्वती से , रोमियो ने जूलियट से किया ,' लगता था सिक्स मिलियन डॉलर मेन ' जैसे 'वयोनिक
वुमन ' से प्यार करता था वैसे ही ये भी मुझे प्यार करेगा |
लेकिन इस के बावजूद मेरा प्यार कम नहीं हुआ | क्यों की प्यार ऎसी अद्भुत चीज है दिन -ब -दिनकि जिसका स्फुरण ही होता है, विनाश या विलुप्ति नहीं | लेकिन प्यार कि परिणति होती है यह मै खूब जानती हू |
जिससे मै प्यार करती हू उससे मेरा आवेग अब
संयमित है | अब मै अपना सोलह आना प्यार पूरी तरह से निछावर नहीं करती | अब
मै अपने लिए बारह आना रखती हू और प्यार के लिए चार आने | सीधा हिसाब | प्यार के नाम पर पहले मै बहुत खर्चीली थी दो आना लेकर सोलह आना देती थी |
अब दो आना लेती हू और दो आना ही देती हू , पर जितना देती हू , वह सोलह आना खरा होता है
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