बहू ठीक नहीं निकली |

मेरी एक दोस्त ने एक दिन गुस्से में आकर अपने पति के सिर  पर कुकर दे मारा और दरवाजा खोल कर घर के बाहर निकल गयी | रात को अपने एक सहेली के यंहा शरण ली और फिर लेडिज हॉस्टल \
बाद में  दौड़ धूपकर उसने एक नौकरी का बंदोबस्त भी कर लिया |
रिश्तेदारों में चर्चा   लावा की तरह फैलती  गयी  |
'बहू ठीक नहीं निकली | काश उसके चरित्र का पहले ही  अंदाज़ा होता |

हमारे देश में किसी लड़की या औरत के चरित्र का अंदाज़ बहुत ही जल्दी लगा लिया जाता है , सब्जी अच्छी है या बुरी यह परखने में भी कभी कभी समय लगता है लेकिन औरत का चरित्र कैसा है   इसका अंदाज़ा  लोग मिनटों में लगा लेते है |







मै एसी कितनी ही   औरतो को जानती   हू  जो domestic   violence   की विक्टिम   होने   के बाद भी   दो जून खाने के लिये  और साल भर बदन ढंकने के लिये दो कपड़ो की खातीर उस घर की मिटटी से चिपकी रहती है . बच्चो को कीट पतंगो की  तरह  बढ़ने देती है और घर में पड़ी रहती है या  पराश्रयी पेड़ की तरह  पति   रूपी पेड़ को   जकडे रहती है |   और इस व्यवस्था को समाज बेहतर करार देता है और एसी औरत को एक संवेदनशील ,औरत ,जो सब कुछ सह कर भी अपने घर नामक  पिंजरे को बचाये  रखती  है |



मेरी दोस्त की तरह कितनी लडकियों का स्नायु बल इतना मजबूत है  अपने पति के अनादर को सहन करते हुए चिपकने के बजाय, प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने लिए अपना रास्ता तय करना पसंद करे |
मेरी यह दोस्त अपने तथकथित पति के  कार . बेंक बेलेंस और स्टेटस  की छतरी के निचे बैठी नहीं रही , किसी की अनुकम्पा अनुग्रह के लिये हाथ नहीं फैलाया , बल्कि  अपने पावो   तले  जमीन   को  महबूत किया    इसलिए गर्व है मुझे उस  पर |  गर्व है मुझे इसकी बहादुरी पर |













मन   उंडेलता है   भर भर प्यार इस  साहस से सराबोर मेरी दोस्त के लिये |


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